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कबीर वाणी 03 । Need of satsang । कबीर संगत साधु की,.. । दोहे भावार्थ सहित

संत कबीर साहब की वाणी / 03

    प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "संतवाणी सटीक" से संत श्री कबीर साहब की वाणी - ' कबीर संगत साधु की,...' को शब्दार्थ, भावार्थ सहित पढेंगे। जिसे पूज्य पाद लाल दास जी महाराज ने लिखा है।

संत सद्गुरु कबीर साहब जी महाराज की इस God भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन,भजन कीर्तन, पद्य, वाणी, छंद) "कबीर संगत साधु की,..." में बताया गया है कि-अच्छी व बुरी संगति का असर मनुष्य के जीवन पर पड़ता है। संत कबीर साहब अपनी वाणी में संगति की महिमा पर दोहे में कहते हैं कि:- संगति सो सुख उपजै, कुसंगति सो दुख जाए। ... इसकी व्याख्या में हम लोग निम्नांकित बातों को समझ सकेंगे। जैसे-संगति meaning, अच्छी संगति के लाभ, संगति पर दोहे, संगति meaning in Hindi, संगति का प्रभाव, संगति का असर in English, संगति का फल कहानी, संगति का प्रभाव, जैसी संगति बैठिए तैसो ही फल दीन, संगत का प्रभाव, सत्संगति, संगत का असर शायरी, संगति पर कविता, चरित्र पर दोहा, संगति पर श्लोक, संगत से गुण होत है संगत से गुण जात दोहा, कबीर के दोहे, व्यवहार पर दोहे, संतो के दोहे, गुण पर दोहे, ज्ञान पर दोहे, चेतावनी दोहे आदि बातें।

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संत कबीर साहब और टीकाकार
संत कबीर साहब टीकाकार- लाल दास जी

Need of satsang सत्संग की जरूरी क्यों है?

 संत कबीर साहब जी कहते  हैं जो लोग संतो का संग करते हैं, उन्हें बड़ा फायदा होता है। यह संगति की विशेषता है। साधु संगति की महिमा है। संतों की संगति करना इसलिए भी जरूरी ( Need ofक satsang) है कि उससे निम्नलिखित फायदे होते हैं। इसे अच्छी तरह समझने के लिए निम्न दोहों का पााठ करेंं-

सद्गुरु कबीर साहब की वाणी

॥ सत्संग को अंग ॥

 संगति सों सुख ऊपजै , कुसंगति सों दुख जोय ।
 कहै कबीर तहँ जाइये , साधु संग जहँ होय ॥१ ॥
 कबीर संगति साध की , हरै और की व्याधि ।
 संगति बुरी असाध की , आठो पहर उपाधि ॥२ ॥
 कबीर संगति साध की , जौ की भूसी खाय ।
 खीर खाँड़ भोजन मिलै , साकट संग न जाय ॥३ ॥
 कबीर संगति साध की , ज्यों गंधी का बास ।
 जो कुछ गंधी दे नहीं , तो भी बास सुबास ॥४ ॥
 मथुरा भावै द्वारिका , भावै जा जगन्नाथ ।
 साध संगति हरि भजन बिनु , कछू न आवै हाथ ।।५ ।।
 राम बुलावा भेजिया , दिया कबीरा रोय ।
 जो सुख साधू संग में , सो बैकुण्ठ न होय ॥६ ॥

 शब्दार्थ - जोय - उत्पन्न होता है । व्याधि रोग , आफत , कष्ट । उपाधि -उपद्रव , उलझन , उत्पात , अशान्ति , दुःख । खाँड़ कच्ची शक्कर , मीठी चीज । खीर खाँड़ - पौष्टिक और स्वादिष्ट भोजन । साकट - जिसको धर्म में आस्था नहीं है या ईश्वर - भक्ति की ओर झुकाव नहीं है , शाक्त , असाधु , अभक्त , दुर्जन , निगुरा , नास्तिक , मांस - मछली खानेवाला । गंधी सुगन्धित तेल और इत्र आदि बेचनेवाला । बास - सुवास , सुगंध । भावै अच्छा लगे , चाहे । बुलावा - आमंत्रण । बैकुण्ठ - वैकुण्ठ , विष्णुलोक ।

टीका का व्याख्याकार पूज्यपाद लालदास जी महाराज, संत नगर, बरारी।
टीकाकार-लालदासजी

 भावार्थ - अच्छी संगति में सुख उपजता है और कुसंगति में दुःख । संत कबीर साहब कहते हैं कि जहाँ साधु संतों की संगति मिले , वहीं जाइए ॥१ ॥ साधुओं की संगति, संगति करनेवालों के संकटों को हर लेती है । इसके विपरीत असाधुओं ( असज्जनों - दुष्टों - दुर्जनों ) की संगति बुरी होती है ; क्योंकि उसमें आठो पहर ( हमेशा ) दुःख - ही - दुःख होता रहता है ॥२ ॥ जौ की भूसी खातेे  साधुओं की संगति करे ; परन्तु जिनकी धर्म और ईश्वर भक्ति में आस्था नहीं है , वैसे साकटों की संगति में कभी नहीं रहे , चाहे उनके संग खीर - खाँड़ का ही भोजन क्यों न मिले ॥३ ॥ साधुओं की संगति सुगंधित तेल और इत्र आदि बेचनेवाले गंधी के समान है । यद्यपि गंधी कुछ भी इत्र आदि न दे , तथापि उसकी संगति करनेवाले को कुछ - न - कुछ सुगंध मिल ही जाती है । वैसे ही यद्यपि साधु - संत मुख से कुछ भी न कहें , तथापि उनकी संगति करनेवाले को कुछ - न - कुछ लाभ हो ही जाता है।।४ ॥ चाहे कोई मथुरा जाए या द्वारका अथवा जगन्नाथपुरी ; परंतु सत्य बात तो यह है कि साधुओं की संगति और ईश्वर - भक्ति के बिना किसी के भी हाथ कुछ नहीं आता।॥५ ॥ संत कबीर साहब कहते हैं कि यदि राम की ओर से वैकुण्ठ आने का बुलावा आए , तो साधु - संग छोड़कर वहाँ जाने का विचार करते हुए उन्हें रुलाई आएगी अर्थात् वे वहाँ न जाना चाहेंगे ; क्योंकि साधुओं की संगति में जो सुख मिलता है , वह वैकुण्ठ आदि लोकों में दुर्लभ है ॥६ ॥ इति।

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संतवाणी सुधा सटीक, पुस्तक परिचय,
संतवाणी-सुधा सटीक
कबीर वाणी भावार्थ सहित

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कबीर वाणी 03 । Need of satsang । कबीर संगत साधु की,.. । दोहे भावार्थ सहित कबीर वाणी 03 । Need of satsang । कबीर संगत साधु की,.. ।  दोहे भावार्थ सहित Reviewed by सत्संग ध्यान on 11/25/2017 Rating: 5

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