संत कबीर साहब की वाणी / 02
प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "संतवाणी सटीक" से संत श्री कबीर साहब की वाणी "जिनकी लगन गुरु सो नाहीं...' भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी पढेंगे। जिसे पूज्य पाद लाल दास जी महाराज ने लिखा है।
संत सद्गुरु कबीर साहब जी महाराज की इस God भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन,भजन कीर्तन, पद्य, वाणी, छंद) "जिनकी लगन गुरु सों नाहीं, ।,..." में बताया गया है कि- जो लोग गुरु दीक्षा नहीं लेते हैं उनकी गति कैसी होती है इस संबंध में संत कबीर साहब के यह भजन स्पष्ट रूप से वर्णन करती है। इससे गुरु महिमा का बोध होता है, जिनके जीवन में संत सद्गुरु नहीं होते हैं उनका जीवन कैसा होता है। साथ-ही-साथ निम्नांकित बातों के बारे में भी कुछ न कुछ पता चलता है- ,कबीर वाणी में सतगुरु महिमा,सदगुरु, kabir vani audio,sant kabir vani in hindi,kabir amritwani, kabir vani hindi,kabir das ke bhajan,कबीर के पद अर्थ सहित,कबीर वाणी अमृत संदेश, Why need guru,गुरु भजन,जैन गुरु भक्ति,शिव गुरु का भक्ति गाना,गुरु भक्ति की कहानी,पंच महा गुरु भक्ति,सतगुरु भक्ति संगीत,गुरु वंदना,गुरु संगीत, आदि बातें।
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संत कबीर साहब |
कबीर साहब जी कहते हैं जिन लोगों को जीवन में गुरु नहीं है अर्थात जिन्होंने गुरु नहीं किया है, उसका जीवन कैसा होता है। Why need guru, "जिनकी लगन गुरु सो नाहीं,... इस बात को निम्नांकित पद में उन्होंने समझाने की कृपा की है इसे अच्छी तरह से समझने के लिए निम्नांकित चित्र में पढ़ें-
संत कबीर साहब की वाणी
( 02 )
जिनकी लगन गुरू सों नाहीं।।टेक ॥
ते नर खर कूकर सम जग में , बिरथा जन्म गँवाहीं ।
अमृत छोड़ि विषय रस पीवै , धृग धृग तिनके ताईं ॥१ ॥
हरी बेल की कोरि तुमड़िया , सब तीरथ करि आई ।
जगन्नाथ के दरसन करके , अजहुँ न गइ करुवाई ॥२ ॥
जैसे फूल उजाड़ को लागो, बिन स्वारथ झरि जाई ।
कहै कबीर बिन वचन गुरू के , अंतकाल पछिताई ॥३ ॥
शब्दार्थ - लगन - लगाव , संबंध , प्रेम । ते - वे । नर - मनुष्य । खर - गदहा । कूकर - कुक्कुर , कुत्ता । सम - समान , जैसा । जग - संसार । बिरथा - व्यर्थ , बेकार , बिना किसी प्रयोजन के , बिना किसी निजी लाभ के । गँवाही - गवाते हैं । अमृत ईश्वर - भक्तिरूपी अमृत , ईश्वर - नामरूपी अमृत । विषय - रस - रूप , रस , गंध , स्पर्श तथा शब्द - इन पंच विषयों का आनन्द या सुख । धृग - धृग , धृक् , धिक्कार , निन्दनीय । तिनके उनके । ताईं - लिए , वास्ते । बेल - बेलि , लता , लत्तर । कोरि - कोरी , नयी । तुमड़िया - तुम्बी , तुमड़ी , तीता कहू ( तितलौकी ) जिसके अन्दर के गूदे को निकालकर साधु - महात्मा जलपात्र बनाते हैं । तीरथ - तीर्थ , पवित्र नदी , पवित्र स्थान । जगन्नाथ - जगन्नाथपुरी , उड़ीसा का एक तीर्थस्थान जहाँ भगवान् विष्णु की मूर्ति स्थापित है । अजहुँ - आज भी , अब भी । करुवाई - कडुआहट , तिताई , तीतापन । उजाड़ - जंगल , वन । बिन स्वारथ - अपना कोई प्रयोजन पूरा किये बिना । अन्तकाल - अन्तिम समय में , शरीर छोड़ने के समय में ।
भावार्थ - जिनका प्रेम संत सद्गुरु के चरणों में नहीं है । टेक ।। वे मनुष्य गदहे और कुत्ते के समान बेकार ही संसार में अपना जीवन बिताते हैं । ऐसे मनुष्य ईश्वर के नाम - भजनरूपी अमृत का पान करना छोड़कर रूप , रस , गंध , स्पर्श तथा शब्द- इन पंच विषयों का तुच्छ सुख प्राप्त करते हैं । ऐसे मनुष्यों का जीवन प्रशंसनीय नहीं , निन्दनीय है ॥१ ॥ हरी लत्तर से तुरन्त तोड़ी गयी तितलौकी सभी पवित्र नदियों में स्नान तथा सभी पवित्र देव - मंदिरों में देव - मूर्तियों के दर्शन करने के बाद अन्त में जगन्नाथपुरी आयी और वहाँ भी उसने भगवान् विष्णु की मूर्ति के दर्शन किये , इतना करने के बाद भी उसके भीतर की तिताई दूर नहीं हुई ॥२ ॥ जैसे जंगल में फूल खिलें और समय पाकर झड़ जाएँ ; वे देव - मूर्ति के सिर पर न चढ़ पाएँ , खिलने का अपना उद्देश्य पूरा नहीं हो सका , उनका खिलना व्यर्थ ही हुआ । इसी प्रकार जो मनुष्य संसार में आकर गुरु धारण नहीं करता और उनकी भक्ति नहीं करता , उसका जीवन व्यर्थ चला गया - ऐसा समझा जाना चाहिए । संत कबीर साहब कहते हैं कि गुरु के वचनों को जीवन में उतारे बिना मनुष्य को शरीर छोड़ने के समय पछताना पड़ता है ॥३ ॥ इति।
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संतवाणी-सटीक |
कबीर वाणी भावार्थ सहित
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कबीर वाणी 02 । Why need guru । जिनकी लगन गुरु सो नाहीं । गुरु महिमा भजन अर्थ सहित
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
6/24/2020
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