योगी मत्स्येन्द्रनाथ की वाणी / 01
प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "संतवाणी सटीक" एक अनमोल कृति है। इस कृति में बहुत से संतों के वाणियों को एकत्रित किया गया है, जिससे यह सिद्ध हो सके कि सभी संतों के सार विचार एक ही हैं। साथ ही उन सभी वाणियों का टीकाकरण भी किया गया है। आज मत्स्येन्द्रनाथ की वाणी "अवधू रहिबा हाटे बाटे,...' भजन को भावार्थ सहित पढेंगे।
इस पद के पहले जालंधर नाथ जी महाराज की वाणी को अर्थ सहित पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
योगी मत्स्येन्द्रनाथ की वाणी अर्थ सहित
प्रभु प्रेमियों ! इस पोस्ट में आप पाएंगे कि हिंदी साहित्य की प्रसिद्ध पंक्तियों (काव्य, Poetry, अनमोल दोहों) में नाथ पंथ के संस्थापक श्री गोरखनाथ जी महाराज के गुरु योगी मत्स्येन्द्र नाथजी महाराज अपने साधु-संतों को कहा रहना चाहिए? इस संबंध में विस्तार से चर्चा करते हैं। क्योंकि वह समझते हैं कि साधु संतों का सम्मान क्या है? साधुओं की मर्यादा क्या है? मर्यादा के बिना साधु अपने कर्तव्य से भ्रष्ट हो जाता है और भारत के सिद्ध साधु-संतों की छवि विश्व के मानस पटल पर राजमुकुट की भांति सम्मानित है। आइए, महाराज जी की वाणी में ही इसे अच्छी तरह समझते हैं।
विकीपीडिया के अनुसार मत्स्येंद्रनाथ अथवा मचिन्द्रनाथ ८४ महासिद्धों (बौद्ध धर्म के वज्रयान शाखा के योगी) में से एक थे। वो गोरखनाथ के गुरु थे जिनके साथ उन्होंने हठयोग विद्यालय की स्थापना की। उन्हें संस्कृत में हठयोग की प्रारम्भिक रचनाओं में से एक कौलजणाननिर्णय (कौल परंपरा से संबंधित ज्ञान की चर्चा) के लेखक माना जाता है। वो हिन्दू और बौद्ध दोनों ही समुदायों में प्रतिष्ठित हैं। मचिन्द्रनाथ को नाथ प्रथा के संस्थापक भी माना जाता है।मचिन्द्रनाथ को उनके सार्वभौम शिक्षण के लिए "विश्वयोगी" भी कहा जाता है।
योगी मत्स्येन्द्र नाथजी महाराज की वाणी
।। मूल पद्य ।।
अवधू रहिबा हाटे बाटे , रूख - बिरख की छाया ।
तजिबा काम क्रोध और त्रिस्ना , और संसार की माया ॥
अर्थ - हे अवधूतो ! हाट - बाट में और गाछों की छाया में रहना ; काम , क्रोध , तृष्णा और संसार की माया का त्याग करना । इति। संतवाणी सटीक में योगी मछंदर नाथ की वाणी का इतना ही संकलन है।
इस पद्य के बाद महायोगी गोरखनाथ जी महाराज की वाणी का संकलन है, उसे पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संतवाणी सटीक" से जाना कि श्री गोरखनाथ जी महाराज के गुरु योगी मत्स्येन्द्र नाथजी महाराज अपने साधु-संतों को कहां रहने के लिए बताया है ? इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस भजन का पाठ इस वीडियोो में किया गया है उसे सुुनें-
योगी मत्स्येन्द्रनाथ वाणी भावार्थ सहित
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मत्स्येन्द्र वाणी 01 । Where should the monk? । अवधू रहिबा हाटे बाटे,... । अर्थ सहित
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
6/19/2020
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