महायोगी गोरखनाथ की वाणी / 01
प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "संतवाणी सटीक" से महायोगी संत श्रीगोरखनाथ जी महाराज की वाणी - ' अबधू ऐसा ज्ञान विचारी,..' को भावार्थ सहित पढेंगे, सुनेंगे। जिसे सद्गुरु महर्षि संतसेवी जी महाराज ने लिखा है।
इस God (कविता, पद्य, वाणी, छंद, भजन) "अवधू ऐसा ज्ञान विचारी,..." में बताया गया है कि- मनुष्य जीवन में संत सतगुरु की आवश्यकता क्यों है? संत सद्गुरु कैसे को बनाना चाहिए? कौन-सा सद्गुरु जीवो का उद्धार करने में समर्थ है? गुरु बनाने में क्या सावधानी रखनी चाहिए? कैसे चुनें अपना गुरु? गुरु के गुण क्या होते है? सच्चा गुरु किसे कहते है? गुरु कैसा होना चाहिये? गुरु विचार,सही गुरु को कैसे पहचाने?Guru Hindi, गुरु कैसा होना चाहिए, गुरु दीक्षा विधि, गुरु का प्यार कैसे प्राप्त करें, प्राचीन गुरु के गुणों गुण, सच्चा गुरु किसे कहते हैं?कैसे बनाते हैं,शिव को गुरु कैसे बनाएं? किसी को अपना गुरु कैसे बनाएं, गुरु कैसे बनाते हैं, सच्चे गुरु को कैसे पहचाने, गुरु की आवश्यकता, आदि बातें। तो आइए पढ़ते हैं।
इस भजन के पहले सदगुरु मछेन्द्रनाथ जी महाराज की वाणी को अर्थ सहित पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
संत सद्गुरु कैसे को बनाना चाहिए? How should a saint master be made?
महायोगी गुरु गोरखनाथ जी महाराज कहते हैं- हे साधु भाई ! मैंने ऐसे ज्ञान का विचार किया है , जिसमें प्रकाश की जगमगाहट से ( अंतराकाश ) उजाला होता है।टेक ॥साधु-संतों ! मैंने ज्ञान को इस तरह से विचारा है या अनुभव किया है, जिसमें अंतराकाश में प्रकाश की जगमगाहट होती है। यहां ध्यान से संबंधित बातों की चर्चा है। यह आंतरिक साधना से संबंधित है ।.... इस संबंध में ज्यादाा जानकारी के लिए इस पद्य का भावार्थ किया गया है, उसे पढ़ें-
गुरु गोरखनाथ की वाणी
।।01।।
अवधू ऐसा ग्यांन बिचारी , तो मैं झिलिमिलि जोति उजारी ।टेक ।। जरा जोग तहाँ रोग न ब्यापैं , ऐसा परषि गुर करना । तन मन सूं जे परचा नाहीं , तो काहे को पचि मरनां ॥१ ॥ काल न मिट्या जंजाल न छुटिया , तप करि हुवा न सूरा । कुल का नास करै कोई मति , जै गुर मिलै न पूरा ॥२ ॥ सप्त धातु का काया प्यंजरा , ता माहिं ' जुगति ' बिन सूवा । सतगुरु मिलै त उबरै बाबू , नहिं तौ परलै हूवा ॥३ ॥ क्रंद्रप रूप काया का मंडण , अँबिरथा कांइ उलींचौ । गोरष कहै गुणौं रे भौंदू , अरंड अमीं कत सीचौं ॥४ ॥
हे साधु भाई ! मैंने ऐसे ज्ञान का विचार किया है , जिसमें प्रकाश की जगमगाहट से ( अंतराकाश ) उजाला होता है।टेक ॥ परखकर ऐसा गुरु करना कि ( उनकी युक्ति से ) जब योग किया जाए , तो ( दैहिक , दैविक और भौतिक ) रोग नहीं सतावे । तन और मन देने पर भी यदि प्रभु का परिचय प्राप्त न हो , तो व्यर्थ में ( कठिन योगों द्वारा ) कष्ट भोगकर क्यों मरना ? ( अर्थात् कठिन योग करके व्यर्थ जान गँवाने से कोई लाभ नहीं है । ) ॥ १ ॥ यदि सच्चे गुरु नहीं मिले , तो काल ( यमत्रास ) नहीं मिटता और ( शरीर तथा संसार का ) बंधन नहीं छूटता । कितना भी तप कर ले , पर वह वीर ( निर्भय ) नहीं हो पाता । यदि पहुँचे हुए पूरे गुरु नहीं मिले , तो घर छोड़कर लोग अपने कुल ( वंश ) का नाश न करे ॥२ ॥ सात धातुओं ( रस , रक्त , मेद , मज्जा , मांस , अस्थि और शुक्र ) बना यह शरीर पिंजड़े के समान है । युक्ति नहीं जानने के कारण जीवरूप सुग्गा इसमें बंद है । सच्चे गुरु मिल जाएँ , तो इसका उद्धार हो सकता है , अन्यथा दुःख झेलना निश्चित है ॥३ ॥ कामदेव के समान तुम्हारे काया का निर्माण किया गया है , इसे व्यर्थ ही क्यों बर्बाद करते हो ? गुरु गोरखनाथजी महाराज कहते हैं कि हे मूर्ख ! सुनो , तुम अरंड के पेड़ को अमृत से क्यों सींचते हो ? ( अर्थात् सच्चे गुरु की भक्ति के बिना कठिन योग करके अपने मूल्यवान जीवन को क्यों बर्बाद करते हो ? ४ ॥ व्याख्याकार - महर्षि संतसेवी परमहंसजी महाराज । इति।
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प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "शांति संदेश" के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि कौन-सा सद्गुरु जीवो का उद्धार करने में समर्थ है? गुरु बनाने में क्या सावधानी रखनी चाहिए? कैसे चुनें अपना गुरु? गुरु के गुण क्या होते है? सच्चा गुरु किसे कहते है? इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।निम्न वीडियो में उपर्युक्त लेख का पाठ करके सुनाया गया है।
संतवाणी-सटीक |
गोरख वाणी भावार्थ सहित
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गोरख वाणी 01 । How should a saint master be made? । अवधू ऐसा ज्ञान विचारी । भावार्थ सहित
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
6/28/2020
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