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धर्मदास वाणी 02, Satnam ke vyaapaar ।। हम सत्तनाम के बैपारी, ।। भावार्थ सहित -स्वामीलालदास

नि धर्मदास साहब की वाणी / 01

प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के विरक्त शिष्य  पूज्यपाद लाल दास जी महाराज  द्वारा टीकीत भारती (हिंदी) पुस्तक "संतवचनावली सटीक" अनमोल कृति है। इस कृति में बहुत से संतवाणीयों को एकत्रित करके सिद्ध किया गया है कि सभी संतों का एक ही मत है। इसी कृति में  संत Dhani Dhammdas जी महाराज   की वाणी  ''हम सत्तनाम के बैपारी..'' का शब्दार्थ, भावार्थ किया गया है। इसमें संतों के व्यापार अन्य लोगों के व्यापार से बहुत ही भिन्न होता है। संतलोग सत्य नाम का व्यापार करते हैं और ध्यान अभ्यास के द्वारा प्रकाश रूपी हीरा मोती को प्राप्त करके मोक्ष रूपी फल प्राप्त करते हैं। ऐसा बताया गया है।

इसके साथ ही इस भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन,भजन कीर्तन, पद्य, वाणी, छंद) में बताया गया है कि- संत लोग किस चीज का व्यापार करते हैं? संतो के व्यापार में पूंजी किस चीज की होती है? इस व्यापार में क्या लाभ है? इस व्यापार में क्या करना पड़ता है? इस व्यापार में क्या परेशानी होती है? इस व्यापार में किस चीज का निर्माण होता है? इस व्यापार में धनी धर्मदास जी कितना दृढ़ है?   इन बातों के साथ-साथ निम्नलिखित बातों पर भी कुछ-न-कुछ चर्चा मिलेगा। जैसे कि- संतों का व्यापार, अपने व्यापार को कैसे बढ़ाएं? व्यापार कितने प्रकार के होते हैं? व्यवसाय और व्यापार में क्या अंतर है? घर से क्या बिजनेस करे? व्यापार परिभाषा, व्यापार क्या है, व्यापार का अर्थ, व्यापार विचारों, व्यापार के प्रकार, व्यापार in हिन्दी, व्यापार का महत्व, इत्यादि बातें। इन बातों को समझने के पहले, आइए ! संत धनी धर्मदास साहब के दर्शन करें।

इस भजन के पहले वाले भजन को अर्थ सहित पाठ करने के लिए   यहां दवाएं।

संतो के व्यापार पर चर्चा करते धनी धर्मदास जी महाराज और कबीर साहब
संतो के व्यापार पर चर्चा करते संत द्वै

Satnam ke vyaapaar "हम सत्तनाम बैपारी...

 संत धनी धर्मदास जी महाराज  कहते हैं कि "मैं परमात्मा के अनाहत नाद का ध्यान - रूप व्यापार करता हूँ।। टेक ।। संसार के प्रायः मनुष्य भौतिक पदार्थों ; जैसे काँसे , पीतल , लौंग , सुपारी आदि का व्यापार आरंभ करते हैं ......" इसे अच्छी तरह समझने के लिए इस शब्द का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है; उसे पढ़ें-

।। मूल पद्य ।।

हम सत्तनाम बैपारी ।।टेक ।। कोइ कोइ लादै काँसा पीतल , कोइ कोइ लौंग सुपारी । हम तो लाद्यौ नाम धनी को , पूरन खेप हमारी ॥१ ॥ पूँजी न टूटै नफा चौगुना , बनिज किया हम भारी । हाट जगाती रोक न सकिहै , निर्भय गैल हमारी ।।२ ।। मोती बुन्द घट ही में उपजै , सुकिरत भरत कोठारी । नाम पदारथ लाद चला है , धर्मदास बैपारी ॥३

शब्दार्थ - सत्तनाम = परमात्मा का वह अविनाशी ध्वन्यात्मक नाम या शब्द , जिससे सारी सृष्टि का विकास हुआ है , सारशब्द , अनाहत नाद । बैपारी = व्यापारी , व्यवहार ( रोजगार ) करनेवाला । लाद्यौ = लादा , ढोने या ले जाने के लिए रखा । धनी = मालिक , परमात्मा । खेप = लदान , एक बार में ले जानेवाली वस्तु । पूँजी - प्रेम , ध्यान । न टूटै = टूटता नहीं है , घटता नहीं है । नफा - लाभ , मोक्षरूपी लाभ बनिज = वाणिज्य , व्यापार । हाट जगाती = हाट में दुकानदारों से कर वसूल करनेवाला कर्मचारी , संसाररूपी हाट में किये गये कर्मों का लेखा - जोखा माँगनेवाला यमराज । गैल = मार्ग । मोती = अंदर में दिखाई पड़नेवाला मोती का - सा प्रकाश । सुकिरत = सुकृत्य , सत्कर्म , सुकृत ( कबीर साहब सत्ययुग में ' सत्य सुकृत ' नाम धरकर आये थे ) । कोठारी = भंडारी , भंडार की देख - रेख करनेवाला अधिकारी । 

भावार्थ - मैं परमात्मा के अनाहत नाद का ध्यान - रूप व्यापार करता हूँ।। टेक ।। संसार के प्रायः मनुष्य भौतिक पदार्थों ; जैसे काँसे , पीतल , लौंग , सुपारी आदि का व्यापार आरंभ करते हैं ; परन्तु मैंने मालिक ( परमात्मा ) के अलौकिक नाम ( अनाहत नाद ) का ध्यान - रूप व्यापार आरंभ किया है और इस बार का ( इस जन्म का ) मेरा यह व्यापार ( कार्य ) बहुत बड़ा है ॥१ ॥ मेरी प्रेमरूपी पूँजी कभी घटेगी नहीं और इससे मुझे अपार लाभ होगा । मैंने यह बहुत बड़ा व्यापार आरंभ किया है । क्योंकि इससे होनेवाला लाभ ( मोक्षरूपी लाभ ) सबसे बढ़कर है । ( जो अंदर में पूरी तरह अनाहत नाद को पकड़ लेता है , वह फिर उसे कभी भी छोड़ नहीं पाता । अनाहत नाद को पकड़कर साधक परम पद में पहुँच जाता है और तब उसे सदा की मुक्ति प्राप्त हो जाती है । ) माया या यमराज मेरे इस व्यापार में कोई विघ्न नहीं डाल पाता अथवा मुझे किसी भी प्रकार तंग नहीं कर पाता और मेरा मार्ग भय रहित है।।२ ॥ ( अनाहत नाद का ध्यान करनेवाले की अधोगति नहीं हो सकती । शब्द - योग आपदा - रहित है । ) शरीर के अंदर मोती उपजते हैं , जिन्हें सत्कर्म करनेवाले साधक भंडारी के रूप में अपने योगहृदय में संगृहीत करते हैं अथवा जिन्हें संत कबीर साहब जैसे संत कोठारी के रूप में अपने योगहृदय ( आज्ञाचक्रकेन्द्रबिंदु ) में जमा करते हैं । ( साधना में मोती का - सा प्रकाश दिखाई पड़ता है । ) धनी धर्मदासजी कहते हैं कि मैं परमात्मा के अलौकिक नाम - तत्त्व का ध्यानरूपी व्यापार करने चल पड़ा हूँ ॥३।।∆


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प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संतवाणी सटीक" के इस भजन भावार्थ का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि  संतों का व्यापार, अपने व्यापार को कैसे बढ़ाएं? व्यापार कितने प्रकार के होते हैं? व्यवसाय और व्यापार में क्या अंतर है? घर से क्या बिजनेस करे? व्यापार परिभाषा, व्यापार क्या है इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने।  इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त लेख का पाठ करके सुनाया गया है।



धनी धर्मदास  वाणी भावार्थ सहित

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धर्मदास वाणी 02, Satnam ke vyaapaar ।। हम सत्तनाम के बैपारी, ।। भावार्थ सहित -स्वामीलालदास धर्मदास वाणी 02, Satnam ke vyaapaar ।। हम सत्तनाम के बैपारी, ।। भावार्थ सहित -स्वामीलालदास Reviewed by सत्संग ध्यान on 11/06/2020 Rating: 5

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