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नानक वाणी 47 रे मन इहि विधि जोग कमाउ भावार्थ सहित || ध्यान की वैज्ञानिक विधि क्या है

गुरु नानक साहब की वाणी / 47

प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की भारती (हिंदी) पुस्तक "संतवाणी सटीक" एक अनमोल कृति है। इस कृति में बहुत से संतवाणीयों को एकत्रित करके सिद्ध किया गया है कि सभी संतों का एक ही मत है।  इसी हेतु सत्संग योग एवं अन्य ग्रंथों में भी संतवाणीयों का संग्रह किया गया है। जिसका शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी अन्य महापुरुषों के द्वारा किया गया हैै। यहां संतवाणी-सुधा सटीक से संत सद्गरु बाबा  श्री गुरु नानक साहब जी महाराज   की वाणी का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी बारे मेंं जानकारी दी जाएगी।   जिसे   पूज्यपाद लालदास जी महाराज  ने लिखा है। 

इस भजन के पहले वाले भजन '' रे मन ऐसो करि संनिआसा ॥ ,....'' को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए   👉 यहाँ दवाएँ.


नानक वाणी 47   रे मन इहि विधि जोग कमाउ   भावार्थ सहित

ध्यान की वैज्ञानिक विधि क्या है

प्रभु प्रेमियों ! सतगुरु बाबा नानक साहब (गरु गोविन्द सिंह जी महाराज) जी महाराज इस भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद)  द्वारा कहते हैं कि-  योग का अभ्यास कैसे करना चाहिए? भजन करने के लिए सिंगी और कंठला किस चीज का बनाना चाहिए? भस्म किस चीज का लगाना चाहिए? किस को बस में करना चाहिए? भिक्षान्न क्या होना चाहिए? सबसे मीठा मधुर राग कौन सा है? परमात्मा का ज्ञान किन शब्दों से होता है? उन ध्वनियों को सुनकर कौन-कौन चकित होते हैं? ध्वनि के सहारे ब्रह्मांड में कैसे स्थिर होते हैं? उपदेश किसे करना है? भेष क्या चीज का धारण करना चाहिए? काल किस पर अपना प्रभाव नहीं डालता है?    आदि बातें। अगर आपको इन सारी बातों को अच्छी तरह समझना है तो इस पोस्ट को पूरी अच्छी तरह समझते हुए पढ़ें-


नानक वाणी 47

॥ रामकली , पातशाही १० ॥ 

रे मन इहि विधि जोग कमाउ । 
सिंगी साँच अकपट कंठला , घिआन विभूत चढ़ाउ  रहाउ ताती गहु आतम बसि कर की , भिँछा नाम अधारं ।  
बाजे परम   तार  तत   हरि   को , उपजै   राग   रसारं  ॥१ ॥ 
उघटै तान तरंग रंगि अति , गिआन गीत बंधानं । 
चकि चकि रहे देव दानव मुनि, छकि छकि व्योम विवानं ॥२॥ आतम उपदेश भेष संयम को , जाप सु अजपा जापै । 
सदा रहै कंचन सी काया , काल न कबहूँ व्यापै ॥३॥४ ॥ 

शब्दार्थ

कमाओ - साधना करो , अभ्यास करो , उद्योग करो । सिंगी - सींग का बना हुआ एक प्रकार का बाजा । कंठला = कंठ में पहनने का एक आभूषण । विभूत - विभूति , भभूत , भस्म । ताती - तत्त्व , परम तत्त्व , परमात्मा । आतम - अपना , अपने मन को । कर हाथ । नाम अधारं = नाम का आधार । परम तार - अनाहत नाद | रसारं - रसालं , रसीला , मधुर , मीठा । उघटै = उघड़ता है , प्रकट होता है । तान तरंग = शब्द की लहर । रंगि अति = बहुत प्रकार का । गीत मिठास । बंधानं = बँधा हुआ , भरा हुआ । चकि चकि = रहे चकित चकित होकर रहते हैं , बारंबार चकित होते हैं । छकि-छकि - तृप्त हो - होकर । व्योम = आकाश । विवानं = वितान , चंदोवा , मंडप | अजपा जाप = अनाहत नाद । कंचन - सी = सोने की सी , नीरोग , स्वस्थ , विकार - रहित , शुद्ध , निर्मल ।  ( अन्य शब्दों की जानकारी के लिए "संतमत+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश" देखें )


 भावार्थ
अरे मन ! इस विधि ( इस तरह ) योग का अभ्यास करो । सचाई का सिंगी बाजा बजाओ और निष्कपटता का कंठला ( एक आभूषण ) गले में धारण करो । ध्यानयोग अभ्यास का भस्म चढ़ाओ ॥ रहाउ ।। 

अपने मन को वश करके परम तत्त्व ( परमात्मा ) को ग्रहण करो । नाम के अवलम्ब ( सहारे ) को हाथ का भिक्षान्न बनाओ । अंदर में हरि तत्त्व ( परमात्म - तत्त्व ) का परम तार ( अनाहत नाद ) बजता है , उससे मधुर राग उपजता है ॥ १ ॥ 

ज्ञान - गीत से  बँधी हुई बहुत प्रकार की शब्द - लहरें प्रकट होती हैं अर्थात् साधना में अनेक प्रकार की मीठी अनहद ध्वनियाँ सुनाई पड़ती हैं , जिनसे साधक को परमात्मा संबंधी ज्ञान होता है । अभ्यासी देव , दानव और मुनि उन ध्वनियों की मिठास पर बारंबार चकित होते हैं । उन ध्वनियों की मिठास से अत्यन्त तृप्त हो - होकर वे आंतरिक आकाश - रूप चॅदोवे - मण्डप ( ब्रह्माण्ड ) में स्थित रहते हैं ॥ २ ॥ 

अपने आपको उपदेश करे ; संयम का वेश ( पोशाक ) धारण करे और श्रेष्ठ अजपा जप ( अनाहत नाद ) का जप ( ध्यान ) करे , तो वह आत्मस्वरूप प्राप्त होता है , जो सदा विकार - रहित - शुद्ध - निर्मल रहता है और जिसपर का कभी अपना प्रभाव नहीं डाल पाता ॥३ ॥ 


आगे है-

 ॥ अथ बीजमंत्र श्रीगुरु नानकजी का लिख्यते ॥ 

ओअंकार सबदि ओअंकार बानी । ओअंकार ने गति ओअंकार की जानी ॥ सबदे धरती सबदे आकास । सबदे सबदि भया प्रकास ॥ नीचे धरती ऊपर आकास । ... 


इस भजन के बाद वाले भजन  ''ओअंकार सबदि ओअंकार बानी....''   को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए  👉  यहां दबाएं।


संतवाणी-सुधा-सटीक पुस्तक में उपरोक्त वाणी निम्न  चित्र की भांति प्रकाशित है-


ध्यान की वैज्ञानिक विधि क्या है

नानक वाणी 47   रे मन इहि विधि जोग कमाउ   भावार्थ सहित


प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संतवाणी-सुधा-सटीक" के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि योगाभ्यास का अर्थ, योगाभ्यास स्वाध्याय, सुबह उठकर योग कैसे करे, Yogabhyas, दैनिक योगाभ्यास क्रम, Yogabhyas in Hindi, Yogabhyas information, What is yoga full information? What is the history of yoga, Who is father of yoga, सूक्ष्म ध्यान किसे कहते हैं,ध्यान का समय, ध्यान की वैज्ञानिक विधि, मेडिटेशन के प्रकार, ध्यान योग.   इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त लेख का पाठ करके सुनाया गया है। 





संतवाणी-सुधा सटीक, पुस्तक, स्वामी लाल दास जी महाराज टीकाकृत
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नानक वाणी 47 रे मन इहि विधि जोग कमाउ भावार्थ सहित || ध्यान की वैज्ञानिक विधि क्या है नानक वाणी 47   रे मन इहि विधि जोग कमाउ   भावार्थ सहित  ||  ध्यान की वैज्ञानिक विधि क्या है Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/10/2021 Rating: 5

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