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श्रीचंद वाणी 01(क) ॐ मात्रा बाबा श्रीचन्दजी की || संतों के सिंगार बेश सजावट का आध्यात्मिक विश्लेषण

ॐ मात्रा बाबा श्रीचन्दजी की

     प्रभु प्रेमियों  !  एक साधु का आध्यात्मिक परिचय किस तरह होना चाहिए ? यह इस वाणी से पता चलता है । इसमें संतों का कमंडल क्या है? झोला क्या है? कमरबंद क्या है? बाजूबंद क्या है ? जटा क्या है? लंगोटी क्या है? इत्यादि बहुत सारे प्रश्न लोगों के मन में होते हैं ? उन सारे संत-महात्माओं से संबंधित जो प्रश्न लोग जानना चाहते हैं वे इस पोस्ट को पूरा पढ़ें- 

बाबा श्रीचंदजी महाराज की वाणी के पहले सदगुरु बाबा नानक साहब की वाणी का पाठ करने के लिए   👉 यहां दवाएँ ।


संतों के सिंगार बेश सजावट का आध्यात्मिक विश्लेषण


संतों के सिंगार, बेश, सजावट का आध्यात्मिक विश्लेषण

प्रभु प्रेमियों  !  इस वाणी के द्वारा बाबा श्री चंद जी महाराज कहते हैं कि साधु क्यों बनना चाहिए? साधु कौन बना सकता है? साधु बनने का क्या फल है ? साधु बनकर क्या करना चाहिए ? साधु को कैसा सिंगार करना चाहिए? किस चीज का कमरबंद धारण करना चाहिए? इत्यादि संपूर्ण बातें आध्यात्मिक रूप से बताते हुए एक साधु के चरित्र का और उसके वेशभूषा का संपूर्ण वर्णन किया गया है । तो आइए उन्हीं के वाणी से पढ़े-


॥ ' ॐ मात्रा ' बाबा श्रीचन्दजी की ॥ 


कहो जी बाले ! 

किसने मूँड़ा , किसने मुँड़ाया । किसका भेजा नगरी आया ॥ 
सतगुर ने मूँड़ा , लेख मुँड़ाया । गुरु का भेजा नगरी आया ॥चेतो नगरी तारो गाम । अलख पुरुष का सुमिरो नाम ॥ गुरु अविनाशी खेल रचाया । अगम निगम का पंथ बताया ॥ ज्ञान की गोदड़ी छेमा की टोपी । जत का आइबंद सील लंगोटी ॥ अकाल खिंथा निरास झोली । जुगत का टोप गुरमुखी बोली ॥ धरम का चोला सत की सेली । मरजादा मेखली ले गले में मेली ॥ ध्यान का बटूआँ निरत का सूईदान। ब्रह्म अंचला लै पहिरे सुजान ॥ बहुरंग मोरछड़ निरलेप बिसटी । निरभो जंग डोरा ना को द्विसटी ॥ जाप जंगोटा सिफट उड़ानी । सिंगी सबद अनाहद गुरु बानी ॥ सरम किया मुंद्रा सिव विभूता । हरि भगति प्रिगानी ले पहिरे गुर पूता ॥ संतोष सूत विवेक धागे । अनेक टली तहाँ पर लागे ॥ सुरति की सूई ले सतिगुरु सीवे । जो राखे सो निरभौ थीवे ॥ सयाह सुपैद जरद सुरखाई । जो लै पहिरे सो गुरभाई ॥ त्रैगुण चकमक अगन मत पाई । दुख सुख धूनी देह जलाई ॥ संयम क्रिपाली सोभाधारी । चरण कवल महि सुरत हमारी ॥ भाउ भोजन अंम्रित करि पाइआ । भला बुरा मन नाहिं बसाइआ ॥ पात्र विचार फरुआ बहुगुणा । कर मंडल तूंबा किसती घणा ॥ अंम्रित पियाला उदक मनि दइआ । जो पीवै सो सीतलु भइआ ॥ इड़ा में आवे पिंगला में धिआवे । सुखमना के घरि सहिज समावे ॥ निरास मठ निरन्तर ध्यान । निरभै नगरी गुर दीपक गिआन ॥ असथिर रिधि अमर पद डंडा । धीरज फहुड़ी तप करि खंडा ॥बस करि आसा सम द्रिसट चौगान । हरष सोग मन महिं नहिं आन ॥ सहिज विरागी करे विराग । माया मोहणी सगल तिआग ॥ नाम की पाषर पौन का घोरा । निहकरम जीन तत का जोड़ा ॥ निरगुण ढाल गुर सबद कमान । अकल संयोग प्रीत के बान ॥अकल की बरछी गुण की कटारी । मन के मार करो असवारी ॥ विषम गढ़ तोड़ निरभौ घर आइआ । नउवत संख नगारा वाइआ ॥ गुर अविनासी सूछम वेद । निरवाण विद्या अपार भेद ॥ अखण्ड जनेऊ निरमल धोती । सोहं जाप सच माल परोती ॥ सिषिया गुरमंत्र गाइत्री हर नाम । निसचल आसण कर विसराम ॥ तिलक सम्पूरण तरपणि जस । पूजा प्रेम भोग महारस ॥ निरवैर संध्या द्रसन छापा । वाद विवाद मिटावे आपा ॥ प्रीत पितंबर मन मृगछाला । चीत चितंबर रुणझुण माला ॥ बुध बाघंवर कुला पुसतीन । षउस षड़ावा ऐ मति लीन ॥ तोड़ा चूड़ा अवर जंजीर ले पहिरे नानक साहि फकीर ॥  जटाजूट मुक्त सिर होइ । मुकता फिरे बंधन नहिं कोई ॥ नानक पूता श्रीचंद बोले । जुगत पछाणे तत विरोले ॥ 
ऐसी मात्रा लै पहिरे कोइ । आवागम मिटावै सोइ ॥ 

शब्दार्थ-

बाले- ऐ बच्चे ! किसने मूँड़ा- किसने संन्यासी बनाया , किसने दीक्षित किया । किसने मुँड़ाया- किसकी प्रेरणा से संन्यासी हुआ । लेख- संस्कार , धर्मशास्त्र , विचार | चेतो =चेताओ , जगाओ । तारो - उद्धार करो । गाम = गाँव | अलख पुरुष = वह परम पुरुष जो स्थूल या सूक्ष्म दृष्टि से न देखा जाए , परमात्मा । अगम = आगम , शास्त्र | निगम = वेद । गोदड़ी - गुदड़ी , फटे - पुराने कपड़ों को जोड़कर बनायी गयी कथरी । छेमा = क्षमा । जत = यतिपन , इन्द्रिय संयम , त्याग , वैराग्य , यम-नियम । आड़बंद =  कटिसूत्र , कमरकस , कमरबंद , फकीरों की लँगोटी । सील - शील , सत्य और नम्र व्यवहार । अकाल - जो काल ( समय और स्थान ) से परे हो , परमात्मा । खिंथा - कंथा , गुदड़ी । लंगोटी - कौपीन , कछनी । निरास - निराशा , सांसारिक पदार्थों से सुख पाने की इच्छा न रखना । जुगत = योग - युक्ति । गुरमुखी बोली- गुरुमुख से निकली हुई बोली ( ज्ञान ) | धरम = धर्म , वैदिक धर्म चोला पोशाक , एक प्रकार का बहुत लंबा और ढीला - ढाला कुरता जिसे साधु - फकीर पहनते हैं । सत - सत्य । सेली - काले ऊन से बना यज्ञोपवीत जनेऊ । मरजादा = मर्यादा , शिष्टाचार , सदाचार । मेखली = कपड़े का वह टुकड़ा जिसे साधु लोग गले में डाले रहते हैं । निरत = संलग्नता , नृत्य । मेली = डाला , रखा । सूईदान = सूई रखने की डिबिया । अंचल - अँचला , कटिवस्त्र , कपड़े का एक टुकड़ा जिसे साधु लोग धोती के स्थान पर लपेटे रहते हैं । सुजान = सुंदर ज्ञानवाले , संत । मोरछड़ - मोरछल , मयूर के पंखों का बना चँवर । बहुरंग - बहुत रूप धारण करनेवाला , परमात्मा । बिसटी = लँगोटी । निरभो = निर्भयता । जंगडोरा = चँवर बाँधने का रस्सी । ना को द्विसटी = किसी से द्वेष नहीं । जंगोटा = मृगचर्म से बना लँगोटा । सिफट = सिफत , गुण । उड़ानी = उड़ान । सिंगी = सींग से बना हुआ एक बाजा । गुरु बानी = आदिगुरु परमात्मा की वाणी , अनाहत नाद | सरम = शर्म , लज्जा । मुंद्रा = मुद्रा , कानों में जानेवाले कुंडल | सिव = शिव , कल्याणकारी संकल्प । विभूता = भभूत , भस्म । म्रिगानी = मृगछाला । गुरपूता = गुरुज्ञान पवित्र हुआ व्यक्ति । टली = फटे - पुराने कपड़ों के टुकड़े । सुरति = ध्यान , ख्याल , प्रेम । निरभौ = थीवे निर्भय होता है । सयाह = काला , शूद । सुपैद - उजला , ब्राह्मण । जरद = पीला , वैश्य । सुरखाई - सुर्ख , लाल , क्षत्रिय । चकमक = एक पत्थर जिसको रगड़ने से आग प्रकट होती है । अगन = अग्नि । मत = मथकर । क्रिपाली = कपाल , खप्पर । भाउ = भाव , प्रेम । फरुआ - काठ का बना हुआ भिक्षा माँगने का पात्र । कर मंडल = कमंडल  । तूंबा - तँबा , सूखे कद्दू को खोखला करके बनाया गया एक बरतन । घणा = बहुत, बहुत प्रकार के | उदक = जल । मनि = मन । इड़ा = प्राण संचरण का बायाँ मार्ग | पिंगला - चेतन धारा के चलने का दायाँ मार्ग । रिधि =  ऋद्धि , सुख - समृद्धि । अमर पद = अविनाशी पद , परमात्मा । डंडा - दंड , लाठी । फहुड़ी = कुदाल । खंडा = खड्ग , तलवार । आसा = असा , लाठी , सोंटा । चौगान = मैदान | सगल = सकल , सभी । पाषर - पाखर , फौलादी जो युद्ध में घोड़े या हाथी को पहनाया जाता है । पौन - पवन , साँस , प्राणायाम | जीन - पलान । तत - पाँच तत्त्व । जोड़ा =जूते । कमान = धनुष । अकल = बुद्धि । संयोग - संजोह , कवच । बरछी - भाला । नउवत = नौबत , शहनाई । वाइआ = बजाया । सूछम वेद - सामवेद । सोहं जाप = अनाहत नाद | परोती = फिराता हूँ , फेरता हूँ । सिषिया = शिखा । तरपणि - तर्पण , तृप्ति | छापा - मोहर , ठप्पा , भगवान् विष्णु के आयुधों ( हथियारों ) के चिह्न जिन्हें भक्त अपने शरीर पर अंकित कराते हैं । संध्या = उपासना । आपा = अहंकार । चीत = चित्त । चितम्बर = चिदम्बर , चिदाकाश , निर्मल चेतन आकाश । रुणझुण - अनाहत नाद । बाघंबर = बघछाला । कुलाह - ऊँची नोकदार टोपी । पुसतीन = पुस्तीन , रोएँदार पशुओं की खाल से बना कोट । षउस , षड़ावा = खड़ाऊँ । तोड़ा - सोने - चाँदी आदि की सिकड़ी जो हाथ या गले में पहनी जाती है । चूड़ा = हाथ में पहनने का एक आभूषण । जटाजूट = जटाओं का समूह । मुकत = मुक्त , मुक्ति , मुकुट । पछाणे = पहचाने जाने । तत - तत्त्व , परमात्मा । विरोले = छानबीन करे । मात्रा = पोशाक , पहरावा , उपयोग में लायी जानेवाली चीजें ।  (  अन्य शब्दों के लिए देखे Santmat+ Moksh-Darshan ka Shabdakosh by Laldas ) 


आगे है-

भावार्थ - ( गुरु नानकदेवजी के पुत्र और उदासी संप्रदाय के आचार्य बाबा श्रीचंदजी ने किसी नगर में जाकर जो उपदेश किया , वह लिखित रूप में आकर ' मात्रा शास्त्र ' कहलाया । नगर के लोगों ने अल्पवयस्क बाबा श्रीचन्दजी से पूछा- ) कहो जी बालक ! तुम्हें किसने दीक्षित किया है ? किसकी प्रेरणा से संन्यास आश्रम में दीक्षित हुए हो ? किसके भेजने पर नगर आये हो ? ( बाबा श्रीचन्दजी ने उत्तर दिया- ) .... 


इस पोस्ट के बाद वाले पोस्ट  ॥ ' ॐ मात्रा ' बाबा श्रीचन्दजी की ॥ 'ज्ञान' गोदड़ी'   के भावार्थ को पढ़ने के लिए  👉  यहां दबाएं।


संतवाणी-सुधा-सटीक पुस्तक में उपरोक्त वाणी निम्न  चित्र की भांति प्रकाशित है-


श्रीचंद वाणी 01  ॐ मात्रा  बाबा श्रीचन्दजी ककी

श्रीचंद वाणी 01  ॐ मात्रा  बाबा श्रीचन्दजी की  मूल

श्रीचंद वाणी 01  ॐ मात्रा  बाबा श्रीचन्दजी की शब्दार्थ



श्रीचंद वाणी 01 शब्दार्थ+ भावार्थ


     प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संतवाणी-सुधा-सटीक" के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि  साधु की पहचान क्या है, साधु पुरुष कैसा होना चाहिए क्यों, स्वभाव से साधु कौन होते हैं, सबसे बड़ा साधु, साधु किसे कहते हैं, साधु बनने के लिए क्या करना पड़ता है, नागा कैसे होता है, साधु की जटा कैसे बनती है, साधु संतों से हमें क्या ग्रहण करना चाहिए, साधु तपस्या कैसे करते हैं, साधु कितने प्रकार के होते हैं, भारत के साधु संत, नागा साधु कैसे बनते हैं, साधु-संत फोटो, साधु किसके लिए जन्म लेते हैं, साधु meaning in English, साधु का मंत्र, साधु के लक्षण आदि बातें,   इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त लेख का पाठ करके सुनाया गया है। 




श्रीचंद वाणी भावार्थ सहित

संतवाणी-सुधा सटीक, पुस्तक, स्वामी लाल दास जी महाराज टीकाकृत
संतवाणी-सुधा सटीक
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