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नानक वाणी 01 । How to do yoga । जोगु न खिंथा जोग न डंडै । अर्थ सहित, टीकाकार- सद्गुरु महर्षि मेंहीं

गुरु नानक साहब की वाणी / 01

प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "संतवाणी सटीक" से संत श्री गुरु नानक साहब की वाणी "जोगु न खिंथा जोग न डंडै...' भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी पढेंगे। जिसे सद्गुरु महर्षि  मेंहीं परमहंस जी महाराज ने लिखा है।

संत सद्गुरु नानक साहब जी महाराज की इस God भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन,भजन कीर्तन, पद्य, वाणी, छंद) "जोगु न खिंथा जोग न डंडै,..." में बताया गया है कि- योग का क्या अर्थ है? योग क्या है?  योग के प्रकार? योग से क्या लाभ है? योग का अंतिम पड़ाव क्या है? योग का इतिहास, योग का महत्व, योग के लक्ष्य, योग के अंग, योग की विशेषताएं, योग कितने प्रकार के होते, शिक्षा और योग । इन बातों के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ उत्तर इस भजन में दिया गया है जैसे कि- नानक वाणी अर्थ सहित,गुरु नानक वाणी भजन,guru nanak dev ji ki bani,gurbani,guru nanak ji ki vani,nanak ke bhaja in hindi with meaning,guru nanak ki gurbani,gurbani video,योग कैसे करें? आदि बातें।

इस भजन के पहले संत कबीर साहब जी के भजनों को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए   यहां दबाएं।


धन धन सतगुरु बाबा नानक शाहब जी महाराज, बाबा नानक, सतगुरु नानक, संत नानक साहब, संत नानक साहब भजन गाते हुए,
धन धन सतगुरु बाबा नानक साहब जी महाराज।

How to do yoga

गुरु नानक साहब जी महाराज कहते हैं कि लोग योग का सही अर्थ नहीं समझते हैं, जो दोनों दृष्टि धारों को जोड़ कर एक करने की युक्ति जानता है, असल में योग करने योग्य वही व्यक्ति होता है। How to do yoga इसे अच्छी तरह समझने के लिए इस शब्दार्थ भावार्थ सहित पढ़ें-

॥ मूल पद्य ॥

 जोगु न खिंथा जोग न डंडै जोगु न भसम चड़ाई ।
 जोगु न मुंदी मुंडि मूड़ाइझै जोग न सिंजी वाई ।
 अंजन माहि निरंजनि रहीऔ जोग जगति इव पार्दऔ ॥१ ॥  गली जोगु न होई । एक द्रिसटि करि समसरि जाणै जोगी कही सोई ॥१ ॥ जोग न बाहरि मड़ी मसाणी जोग न ताड़ी लाई । जोगु न देसि दिसंतरि भविऔ जोग न तीरथि नाई । अंजन माहि निरंजनि रही जोग जुगति इव पाई ॥२ ॥ सतिगुरु भेटै ता सहसा तूटै धावतु बरजि रहाईऔ । निझरु झरै सहज धुनि लागै घर ही परचा पाई । अंजन माहि निरंजनि रही जोग जुगति इव पाई ॥३ ॥ नानक जीवतिआ मरि रहीऔ असा जोगु कमाई । बाजे बाझहु सिंजी बाजे तउ निरभउ पदु पाई । अंजन माहि निरंजनि रहीऔ जोग जुगति इव पाईऔ ॥४ ॥

शब्दार्थ - खिंथा - गुदड़ी । मुंदी - मुद्रा , गोरखपंथी साधुओं के पहनने का एक कर्णभूषण । अंजन - माया । गली - गप करना । द्रिसटि - दृष्टि । समसरि - अच्छी तरह एक करना , सम करना । ताड़ी - नकली समाधि वा नकली ध्यान । भवि - भ्रमण करके । नाई - स्नान करके । ता - तो । सहसा संशय । निझरु झरै अन्तर में प्रकाश - रूप चेतन की वर्षा होवै । सहज धुनि ब्रह्मनाद । बाझहु - बजै ।


भजन व्याख्याता सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज, व्याख्याकार सद्गुरु महर्षि मेंही,
ब्याख्याता सद्गुरु महर्षि मेंहीं

पद्यार्थ - गुदड़ी और दण्ड ( दण्डी संन्यासी का दण्ड या लाठी ) धारण करने से , शरीर पर भस्म लगाने से , कान में मुद्रा पहनने से , मूंड मुंडाने से तथा सिंगी बाजा बजाने से योग नहीं होता है । तात्पर्य यह कि योगिवर गोरखनाथजी महाराज के योगियों - के - से धारण किए जानेवाले उपर्युक्त उपकरणों को धारण करने से ही योग नहीं होता है । माया में मायातीत परमात्मा वर्तमान रहते हैं , योगयुक्ति से उनकी प्राप्ति होती है ॥१ ॥ प्रवचन करने से भी योग नहीं होता है । दृष्टिधारों को अच्छी तरह सम करके जाननेयोग्य वस्तु को जो जानता है , योगी उसी को कहते हैं ॥१ ॥ गाँव से बाहर श्मशान - भूमि में झोपड़ा बनाकर रहने से और विषयों के चिन्तन का ध्यान लगाने से , देश - देशान्तर में भ्रमण करने से , तीर्थों में स्नान करने से योग नहीं होता है । माया में मायातीत परमात्मा वर्तमान रहते हैं , योग - युक्ति से उनकी प्राप्ति होती है ॥२ ॥ जिसको सदगा मिलते हैं , उसका संशय टूट जाता है , वह उपर्युक्त दौड़ - धूप से छूटकर रहता है । अपने अन्दर में ज्योति की वर्षा होती है , सुरत स्वाभाविक ध्वनि - ब्रह्मनाद में लग जाती है । इसका परिचय योग - अभ्यासी को घर ही में प्राप्त हो जाता है । माया में मायातीत परमात्मा वर्तमान रहते हैं , योग - युक्ति से उसकी प्राप्ति होती है ॥३ ॥ बाबा नानक कहते हैं कि योग - अभ्यास ऐसा करो कि जीते जी मर जाओ अर्थात् अपने शरीर के अन्दर - ही - अन्दर चलकर स्थूल , सूक्ष्म आदि शरीरों को त्याग सको और सब इन्द्रियाँ विषयों से विमुख होकर काबू में हो जाएँ । जब तुम्हारे अन्दर बाजे बजे और सिंगी भी बजे , तब भय - रहित पद को प्राप्त करोगे । माया में मायातीत परमात्मा वर्तमान रहते हैं , योग - युक्ति से उनकी प्राप्ति होती है ॥४ ॥ इति।

इस भजन के बाद वाले भजन "जैसे जल में कमल निरालमु...' को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए   यहां दबाएं।


प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संतवाणी सटीक" के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि संत गुरु नानक साहब  दृष्टि धारों को जोड़ने के नाम को योग कहते हैं। अर्थात् जो 'दृष्टि योग' करने जानता है, वही योगी है। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त लेख का पाठ करके सुनाया गया है।



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नानक वाणी 01 । How to do yoga । जोगु न खिंथा जोग न डंडै । अर्थ सहित, टीकाकार- सद्गुरु महर्षि मेंहीं  नानक वाणी 01 ।  How to do yoga । जोगु न खिंथा जोग न डंडै । अर्थ सहित, टीकाकार- सद्गुरु महर्षि मेंहीं Reviewed by सत्संग ध्यान on 6/27/2020 Rating: 5

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