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नानक वाणी 05 । With gurabani meaning । नदरि करे ता सिमरिया जाई । व्याख्याकार- सदगुरु महर्षि मेंहीं

गुरु नानक साहब की वाणी / 05

प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "संतवाणी सटीकअनमोल कृति है। इस कृति में बहुत से संतवाणीयों को एकत्रित करके सिद्ध किया गया है कि सभी संतों का एक ही मत है। इसी कृति में  संत श्री गुरु नानक साहब जी महाराज   की वाणी  ''नदरि करे ता सिमरिया जाई,।..'' का शब्दार्थ, भावार्थ  किया गया है। जिसे पूज्यपाद  सद्गुरु महर्षि  मेंहीं परमहंस जी महाराज ने लिखा है।  उसी  केे बारे में यहां पढ़ेंगेें। 

संत सद्गुरु नानक साहब जी महाराज की इस God भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन,भजन कीर्तन, पद्य, वाणी, छंद) "नदरि करे ता सिमरिया जाई,..." में बताया गया है कि- ईश्वर का स्वरूप कैसा है? उसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है? उसको प्राप्त करने के क्या-क्या साधन है? इन बातों पर मुख्य चर्चा करते हुए निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ न कुछ उत्तर है इस भजन में दिया गया है जैसे कि- Ishwar bhakti Bhajan (geet, poems) में- ईश्वरीय ज्ञान,ईश्वरीय ज्ञान अनादि है,वेद ईश्वरीय ज्ञान है,ईश्वरीय ज्ञान के सम्बन्ध मेंं चर्चा क्या गया है और घर परिवार में ही ईश्वर प्राप्ति की बात बताई गई है।सन्त गुरु नानक देव जी महाराज  कहते हैं कि "दृष्टि योग के द्वारा उस परमात्मा का भजन किया जाता है।.नानक वाणी 05,भावार्थकार- महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज,संतों के प्रवचन, संतों के अनमोल वचन, संतों के दोहे,संतों के सत्संग,संतों के नाम,संतों के भजन, संतों के चेतावनी भजन,ईश्वरीय ज्ञान,ईश्वरीय ज्ञान अनादि है,वेद ईश्वरीय ज्ञान है,ईश्वरीय ज्ञान के सम्बन्ध में,ईश्वरीय ज्ञान – वेद,ज्ञान के स्रोत,नानक bhajan list, नानक poems with meaning, nanak ke poems small with meaning,nanak ke pad hindi mai, ishwar bhakti channel,ishwar bhakti Bhajan,ishwar bhakti geet आदि बातें को समझने के पहले आइए गुरु नानक साहब का दर्शन करें।

इस भजन के पहले वाले भजन "सब किछु घर महि बाहरि नाहीं,..."  को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए   यहां दबाएं।


सतगुरु नानक साहब के पास सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज बैठकर वाणी पर विचार करते हुए
भजन उपदेश देते हुए गुरु नानक देव जी के पास टीकाकार

With gurabani meaning, "नदरि करे ता सिमरिया जाई,..."

सन्त गुरु नानक देव जी महाराज  कहते हैं कि "दृष्टियोग के द्वारा उस परमात्मा का भजन किया जाता है।.With gurabani meaning, "नदरि करे ता सिमरिया जाई,......" इसे अच्छी तरह समझने के लिए इस शब्द का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है; उसे पढ़ें-

सतगुरु नानक साहब की वाणी

॥ मृल पद्य ॥

नदरि करे ता सिमरिआ जाई । आत्मा द्रवै रहै लिवलाई ।।आतमा परातमा एको करै । अन्तरि की दुविधा अन्तरि मरे ।। गुरु परसादी पाइआ जाइ । हरि सिउ चितु लागै फिरि कालु न खाइ ॥१ ॥ रहाउ ।। मचि सिमरिअ होर्व परगामु । ताते विखिआ महि रहे उदासु ।। सतिगुर की ऐसी बड़िआई । पुत्र कलत्र बिचै गति पाई ॥२ ॥ ऐसी सेवकु सेवा करै । जिसका जीउ तिसु आगे धरै ।। साहिब भावै सो परवाणु । सो सेवक दरगह पावै माणु ॥३ ॥ सतिगुर की मूरति हिरदै बसाए । जो ईछै सोई फलु पाए । साचा साहिबु किरपा करे । सो सेवक जम ते कैसा डरै ॥४ ॥ भनति नानक करै विचारु । माची वाणी सिउ धरै पिआरु ॥ ताको पावै मोख दुआर । जप तप सभु इहु सबदु है मारु ॥५ ॥

 शब्दार्थ - नदरि देखे , दृष्टि - योग करे । कलत्र - पत्नी , स्त्री । गति - मुक्ति । दरगह - दरवार । माणु - आदर । भनति - कहता है ।

 भावार्थ -
दृष्टि योग के द्वारा उस ( परमात्मा ) का भजन किया जाता है । लौ लगाये रहे , तो ( चेतन ) आत्मा अर्थात् सुरत परमात्मा की ओर बहे अर्थात् चले । आत्मा और परमात्मा को एक कर दे , तो अन्तर की सब दुविधाएँ अन्तर ही में विनष्ट हो जायें । उपर्युक्त मिलाप की प्राप्ति गुरु के प्रसाद से होती है । परमात्मा हरि से चित्त लग जाय , तो काल फिर विनाश को नहीं पहुँचावेगा ।।रहाउ ॥ सत्यता से भजन करो , प्रकाश होता है । इसलिए भक्त विषयों में उदासीन रहता है । सद्गुरु की ऐसी बड़ाई है कि उनकी शिक्षा के अनुकूल चलनेवाला भक्त स्त्री - पुत्र आदि के संग में रहते हुए मोक्ष पाता है।।२ ।। सेवक को ऐसी सेवा करनी चाहिए कि वह जिसका जीव है , उसके आगे अपने को समर्पित कर दे । जिस भक्त को प्रभु ( परमात्मा ) भावे , सुहावें , प्रिय लगें , वही भक्त ठीक है और वही भक्त प्रभु के दरबार में आदर पाता है।।३ ।। सद्गुरु की मूर्ति को हृदय में बसावे , तो जो इच्छा हो , सो फल प्राप्त करे । जिस सेवक पर सच्चा - असली प्रभु कृपा करें , तो वह सेवक यम से क्यों डरेगा ? अर्थात् नहीं डरेगा।।४ ॥ गुरु नानकदेव कहते हैं कि जो विचार करता है और सत्य वचन से प्रेम करता है , वह मोक्ष - द्वार पाता है । शब्द - अभ्यास करना ही सब जप - तप में सार है।।५ ।। अंतर साधन द्वारा अपने को सब मायिक आवरणों से पार करके कैवल्य दशा में होकर अपने को समर्पित किया जा सकेगा ।। इति।।

टिप्पणी- किसी जानकार गुरु से दृष्टियोग के बारे में जानकारी (अर्थात दीक्षा) लेकर यह साधना करनी चाहिए अर्थात ईश्वर-भक्ति करनी चाहिए। केबल पुस्तक या इंटरनेट में जानकारी अधूरी हो सकती है और इस तरह की जानकारी के आधार पर साधना करना खतरनाक हो सकता है।


इस भजन के बाद वाले भजन ''काइआ नगरु नगर गड़ अंदरि,।..''  को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए   यहां दबाएं।


प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संतवाणी सटीक" के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि  ईश्वर भक्ति कैसे करनी चाहिए? दृष्टि योग के द्वारा उस परमात्मा का भजन किया जाता है.. इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने।  इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त लेख का पाठ करके सुनाया गया है।



नानक वाणी भावार्थ सहित
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नानक वाणी 05 । With gurabani meaning । नदरि करे ता सिमरिया जाई । व्याख्याकार- सदगुरु महर्षि मेंहीं नानक वाणी 05 । With gurabani meaning । नदरि करे ता सिमरिया जाई । व्याख्याकार- सदगुरु महर्षि मेंहीं Reviewed by सत्संग ध्यान on 6/27/2020 Rating: 5

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