महर्षि मेंहीं पदावली / 127
प्रभु प्रेमियों ! संतवाणी अर्थ सहित में आज हम लोग जानेंगे- संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "महर्षि मेंहीं पदावली" जो हम संतमतानुयाइयों के लिए गुरु-गीता के समान अनमोल कृति है। इस कृति के 127वां पद्य "आहो भक्त सार भगति करु हो,....'' का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के बारे में। जिसे पूज्यपाद लालदास जी महाराज, पूज्यपाद संतसेवी जी महाराज और पूज्यपाद श्रीधर दास जी महाराज नेे किया है।
इस Santmat Warning भजन (कविता, पद्य, वाणी, छंद) "आहो भक्त सार भगति करु हो,..." में बताया गया है कि- ईश्वर भक्ति का असली स्वरूप क्या है? सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज के शब्दों में असली ईश्वर भक्ति क्या है? विस्तृत चर्चा के साथ-साथ निम्नलिखित बातों पर भी कुछ-ना-कुछ जानकारी मिलेगी- भजन अर्थ सहित, कुप्पाघाट का भजन, आहो भक्त सार भगति करु हो, असली ईश्वर भक्ति, सार भक्ति, प्रमाणिक के ईस्वर भक्ति, अंतर्मुखी भक्ति, बहिर्मुखी भक्ति, शांति प्रदान करने वाली भक्ति, संसार-चक्र से छुड़ाने वाली भक्ति, जन्म-मरण से मुक्ति दिलाने वाली भक्ति,ईश्वर भक्ति में ही असली सुख,ईश्वर भक्ति का असली मार्ग,ईश्वर भक्ति में ईश्वर का दर्शन असली बात है,Bhakti Ka Saar,भक्ति का सार,प्रभु भक्ति का सार,भक्ति ही जीवन का सार,आत्मा का सच्चा भोजन,भक्ति गीत।
इस पद्य के पहले वाले पद्य को पढ़ने के लिए
ईश्वर की असली भक्ति पर चर्चा करते गुरुदेव। |
True secret of godliness
सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज जी कहते हैं- "हे भक्तों ! परमात्मा की सार भक्ति (अंतर्मुखता प्रदान करनेवाली भक्ति, नवधा भक्ति) करो। यदि तुम असार भक्ति (बहिर्मुखता प्रदान करनेवाली भक्ति) करते रहोगे, तो सदा संसार (जन्म-मरण के चक्र) में ही भ्रमण करते रहोगे और तुम्हारी भक्ति का श्रम भी व्यर्थ हो जाएगा।...." इस विषय में पूरी जानकारी के लिए इस भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है। उसे पढ़ें-
पदावली भजन नंबर 127 और शब्दार्थ, भावार्थ। |
पदावली भजन नंबर 127 का भावार्थ और टिप्पणी। |
पूज्यपाद संतसेवीजी महाराज द्वारा किया गया टीका-
ईश्वर की असली भक्ति पर भजन। |
सार-भक्ति भजन अर्थ सहित। |
असली भक्ति का रहस्य। |
नवधा भक्ति और सार भक्ति। |
इस भजन के बाद वाले पद्य को पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "महर्षि मेंहीं पदावली" के भजन नं. 127 का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के द्वारा आपने जाना कि ईश्वर भक्ति का असली स्वरूप क्या है? सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज के शब्दों में असली ईश्वर भक्ति क्या है? इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस पद का पाठ किया गया है उसे सुननेे के लिए निम्नलिखित वीडियो देखें।
महर्षि मेँहीँ पदावली.. |
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P127, True secret of godliness "आहो भक्त सार भगति करु हो,..."।। महर्षि मेंहीं पदावली अर्थ सहित
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
3/05/2020
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