सूरदास 20, Maya and Moksha Accurate Analysis । अपुनपौ आपुन ही विसर्यो । भजन भावार्थ सहित -स्वामीलालदास
संत सूरदास की वाणी / 20
प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज प्रमाणित करते हुए "संतवाणी सटीक" भारती (हिंदी) पुस्तक में लिखते हैं कि सभी संतों का मत एक है। इसके प्रमाण स्वरूप बहुत से संतों की वाणीओं का संग्रह कर उसका शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया हैं। इसके अतिरिक्त भी "सत्संग योग" और अन्य पुस्तकों में संतवाणीयों का संग्रह है। जिसका टीकाकरण पूज्यपाद लालदास जी महाराज और अन्य टीकाकारों ने किया है। यहां "संतवाणी-सुधा सटीक" में प्रकाशित भक्त सूरदास जी महाराज की वाणी "अपुनपौ आपुन ही विसर्यो,...' का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणियों को पढेंगे।
इस भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद) "अपुनपौ आपुन ही विसर्यो। ,..." में बताया गया है कि- मोक्ष क्या है? मोक्ष का सामान्य अर्थ दुखों का विनाश है। दुखों के आत्यन्तिक निवृत्ति को ही मोक्ष कहते हैं। मोक्ष का अर्थ जन्म और मरण के चक्र से मुक्त होने अलावा सर्वशक्तिमान बन जाना है। मोक्ष का अर्थ होता है मुक्ति। अधिकतर लोग समझते हैं कि मोक्ष का अर्थ जीवन-मरण के चक्र से छूट जाना। भारतीय दर्शनों में कहा गया है कि जीव अज्ञान के कारण ही बार बार जन्म लेता और मरता है । इस जन्ममरण के बंधन से छूट जाने का ही नाम मोक्ष है । जब मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर लेता है, तब फिर उसे इस संसार में आकर जन्म लेने की आवश्यकता नहीं होती । इन बातों के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान पायेंगे। जैसे कि- मुक्ति और मोक्ष में क्या अंतर है, मोक्ष कब मिलता है, मुक्ति का मार्ग कौन सा है, मोक्ष कैसे प्राप्त करें,मोक्ष मंत्र,मोक्ष क्या है,मोक्ष का पर्यायवाची,मोक्ष नाम का अर्थ,मुक्ति और मोक्ष में क्या अंतर है, इत्यादि बातों को समझने के पहले, आइए ! भक्त सूरदास जी महाराज का दर्शन करें।
इस भजन के पहले वाले पद्य "जा दिन सन्त पाहुने आवत," को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
Maya and Moksha Accurate Analysis
भक्त सूरदास जी महाराज कहते हैं कि " हम अपने आत्मस्वरूप को स्वयं वैसे ही भूलकर दुःख उठा रहे हैं , जैसे काँच के महल में कोई कुत्ता अपनी ही परछाहिंयाँ चारो ओर देखकर और उन्हें अज्ञानता से अन्य कुत्ते समझकर उनपर भूक- भूककर परेशान होवे ।..." इसे अच्छी तरह समझने के लिए इस शब्द का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है; उसे पढ़ें-
भक्त सूरदास जी महाराज की वाणी ॥राग नट ॥
।। मूल पद्य ।।
अपुनपौ आपुन ही विसर्यो ।
जैसे स्वान काँच मन्दिर में , भ्रमि भ्रमि भूकि मर्यो ।
हरि सौरभ मृग नाभि बसत है , द्रुम तृन सँघि मर्यो ।
ज्यों सपने में रंक भूप भयो , तस करि अरि पकर्यो ।
ज्यों केहरि प्रतिबिम्ब देखि कै , आपुन कूप पर्यो ।
जैसे गज लखि फटिक शिला में , दसननि जाइ अर्यो ।
मरकट मूठि छाँड़ि नहिं दीनी , घर घर द्वार फिर्यो ।
सूरदास नलनी को सुवटा , कहि कौने जकर्यो ।
शब्दार्थ - अपुनपौ - अपनापा , आत्मस्वरूप । आपुन ही - स्वयं ही । विसर्यो भूल गया है । स्वान - श्वान , कुत्ता । काँच मन्दिर - शीशे का महल । भ्रमि - भ्रमि - भ्रमित हो - होकर , भ्रम से , अज्ञानता से । भूकि मर्यो - मूंक - मूंककर मरता है या परेशान होता है । हरि सौरभ - कस्तूरी । मृग - हिरन । द्रुम - वृक्ष , पेड़ - पौधा । रंक - गरीब , दरिद्र । भूप - राजा । तस करि - वैसे ही । अरि - दुश्मन । केहरि सिंह । प्रतिबिम्ब - परछाहीं । कूप - कुआँ । गज - हाथी । फटिक शिला - स्फटिक पत्थर , संगमरमर । दसननि - दशनों से , दाँतों से । अर्यो - अड़ गया , भिड़ गया । मरकट मर्कट , बंदर । दीनी - दी , दिया । घर - घर द्वार - घर - घर , द्वार - द्वार या घर - घर के द्वार पर । नलनी - नलिका , पतली नली । सुवटा - सुग्गा । जकर्यो कसकर बाँधा है ।
भावार्थ - हम अपने आत्मस्वरूप को स्वयं वैसे ही भूलकर दुःख उठा रहे हैं , जैसे काँच के महल में कोई कुत्ता अपनी ही परछाहिंयाँ चारो ओर देखकर और उन्हें अज्ञानता से अन्य कुत्ते समझकर उनपर दूंक- ककर परेशान होवे ; जैसे हिरन की नाभि में कस्तूरी की सुगंध बसती है ; परंतु वह यह नहीं जानकर उसे खोजने के लिए पेड़ - पौधों और घासों को सूंघता फिरता है ; जैसे .स्वप्न में कोई राजा अपने को दरिद्र हुआ माने और उसी तरह किसी शत्रु राजा के द्वारा पकड़ा हुआ ( बन्दी बना लिया गया ) माने ; जैसे कोई सिंह किसी कुएँ के जल में अपनी ही दीखनेवाली परछाहीं को दूसरा सिंह समझकर उससे लड़ने के लिए कुएँ में कूद पड़े ; जैसे कोई हाथी संगमरमर में अपनी ही दीखनेवाली परछाहीं को दूसरा हाथी समझकर उससे दाँतों से जा भिड़े ; जैसे बंदर सँकरे मुँहवाले बर्तन में अपनी मुट्ठी की मिठाई को छोड़कर भागता नहीं और बंदर पकड़नेवाले के द्वारा पकड़ा जाकर घर - घर , द्वार - द्वार फिरता रहता है । संत सूरदासजी महाराज कहते हैं कि भला कहिये , नली को पकड़कर उलटे लटके हुए सुग्गे को किसने कसकर बाँध रखा है अर्थात् किसी ने भी नहीं ।
टिप्पणी -१ . जंगल आदि किसी निर्जन स्थान में बहेलिया किसी पतली काठी में एक पतली नली पहनाकर उसके दोनों सिरों को जमीन में पहले से गाड़ी गयी दो लकड़ियों के सहारे जमीन से कुछ ऊँचा करके बाँध देता है और नली नीचे जमीन पर सुग्गे के खानेयोग्य कोई पदार्थ रख देता है । सुग्गा आकर उस नली पर बैठता है और झुककर नीचे के खाद्य पदार्थ को खाना चाहता है ऐसी स्थिति में नली सुग्गे के भार से घूम जाती है । सुग्गा चंगुल से नली को पकड़े हुए अधोमुख लटक जाता है । उसे भ्रम हो जाता है कि उसे किसी ने पकड़ लिया है । बहेलिया आता है और उसे पकड़ जाता है । २. थोड़े अंतर के साथ संत कबीर साहब के भी नाम से एक ऐसा पद्य मिलता है , जिसकी टीका सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंसजी महाराज ने ' संतवाणी सटीक ' पुस्तक में की है । इति।।
इस भजन के पहले वाले पद्य "अपुनपौ आपुन ही में पायो," को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संत-भजनावली सटीक" के इस भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के द्वारा आपने जाना कि भारतीय दर्शनों में कहा गया है कि जीव अज्ञान के कारण ही बार बार जन्म लेता और मरता है । इस जन्ममरण के बंधन से छूट जाने का ही नाम मोक्ष है । इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस पद का पाठ किया गया है उसे सुननेे के लिए निम्नलिखित वीडियो देखें।
भक्त-सूरदास की वाणी भावार्थ सहित
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सूरदास 20, Maya and Moksha Accurate Analysis । अपुनपौ आपुन ही विसर्यो । भजन भावार्थ सहित -स्वामीलालदास
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
7/04/2020
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