नानक वाणी 19, Receipt of precious gems from Guru devotion । ज्ञान बोलै आपै बूझै। भजन भावार्थ सहित -मेंहीं
गुरु नानक साहब की वाणी / 19
प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की भारती (हिंदी) पुस्तक "संतवाणी सटीक" एक अनमोल कृति है। इस कृति में बहुत से संतवाणीयों को एकत्रित करके सिद्ध किया गया है कि सभी संतों का एक ही मत है। इसी कृति में संत श्री गुरु नानक साहब जी महाराज की वाणी ''ज्ञान बोलै आपै बूझै,....'' का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है। जिसे पूज्यपाद सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज ने लिखा है। यहां उसी के बारे मेंं जानकारी दी जाएगी।
इस भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद) में बताया गया है कि-भक्ति तत्व को एक बहुमूल्य रत्न कहा जा सकता है। संतों ने 84 रत्नों की बात कही हैं ? प्राचीनकाल से ही बहुमूल्य रत्नों के माध्यम से सौभाग्य और आरोग्य की प्राप्ति होती है। संतों ने धन, भाग्य, विवेक और मोक्ष की प्राप्ति हेतु गुरु-भक्ति की बात कही है। इन बातों की जानकारी के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान पायेंगे। जैसे कि- कीमती पत्थरों के नाम, रत्नों के अंग्रेजी नाम, रत्न मराठी, पंच रत्नों के नाम, रत्न की पहचान, रत्न शास्त्र,भक्तों की भक्ति में शक्ति,गुरु रत्न,नीलम हीरे के बाद बहुमूल्य गुरु रत्न पुखराज,रत्न ज्ञान, रत्न सूची, रत्न की पहचान, पन्ना क्या है, पुखराज कैसे बनता है, रत्न शास्त्र आदि। इन बातों को जानने के पहले, आइए ! सदगुरु बाबा नानक साहब जी महाराज का दर्शन करें।
सदगुरु बाबा नानक साहब जी महाराज कहते हैं कि " आत्म - अनुभव - प्राप्त पुरुष ज्ञान बोलता है , उसे आप ही बूझता , आप ही समझता है और तत्सम्बन्धी तत्त्व उसको आप ही सूझता है । .... " इसे अच्छी तरह समझने के लिए इस शब्द का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है; उसे पढ़ें-
सद्गुगुरु बाबा नानक साहब की वाणी
॥ मूल पद्य ॥
ज्ञान बोलै आपै बूझै , आपै समझै आपै सूझै । गुरु का कहिया अंक समावै , निर्मल सूचै साँचौ माने । गुरु सागर रतनी नहिं टोट , लाल पदारथ साँच अखोट । गुरु कहिया सा कार कमावहु , गुरु की करनी काहे धावहु ।। नानक गुरमति साँचु कमावहु ।
पद्यार्थ -
टीका-सद्गुरु महर्षि मेंहीं |
आत्म - अनुभव - प्राप्त पुरुष ज्ञान बोलता है , उसे आप ही बूझता , आप ही समझता है और तत्सम्बन्धी तत्त्व उसको आप ही सूझता है । वह गुरु की कही हुई गोद में समाता है अर्थात् परमात्म - पद में समाता है और मल - रहित पवित्र सत्य को मानता है । गुरु - रूपी समुद्र के रत्नों को लेने में हानि नहीं होती है । उसमें लाल पदार्थ अर्थात् बहुमूल्य रत्न या हीरा बिना किसी दोष या ओछाई के सत्य है । जो गुरु के कहे हुए कर्त्तव्य हैं , उन कर्त्तव्यों की कमाई करो । गुरु - आज्ञा की करनी में रहकर क्यों दौड़ोगे या हैरान होओगे ? अर्थात् नहीं हैरान होओगे ॥ गुरु नानक कहते हैं कि हे गुरु की बुद्धि के अनुकूल चलनेवाले ! सत्य की कमाई करो । ॥ इति।।
( यहां सदगुरु महर्षि मेंहीं कृत संतवाणी सटीक से गुरु नानक साहब की वाणी समाप्त होती है और अब अन्य टीकाकारोंं द्वारा टिकीट सतगुरु बाबा नानक साहब की वाणी के शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी को पढ़ेंंगेे।)
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संतवाणी सटीक" के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि प्राचीनकाल से ही बहुमूल्य रत्नों के माध्यम से सौभाग्य और आरोग्य की प्राप्ति होती है। संतों ने धन, भाग्य, विवेक और मोक्ष की प्राप्ति हेतु गुरु-भक्ति की बात कही है। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त लेख का पाठ करके सुनाया गया है।
नानक वाणी भावार्थ सहित
संतवाणी-सटीक |
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नानक वाणी 19, Receipt of precious gems from Guru devotion । ज्ञान बोलै आपै बूझै। भजन भावार्थ सहित -मेंहीं
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
8/04/2020
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