गुरु नानक साहब की वाणी / 20
प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की भारती (हिंदी) पुस्तक "संतवाणी सटीक" एक अनमोल कृति है। इस कृति में बहुत से संतवाणीयों को एकत्रित करके सिद्ध किया गया है कि सभी संतों का एक ही मत है। इसी हेतु सत्संग योग एवं अन्य ग्रंथों में भी संतवाणीयों का संग्रह किया गया है। जिसका शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी अन्य महापुरुषों के द्वारा किया गया हैै। यहां संतवाणी-सुधा सटीक से संत सद्गरु बाबा श्री गुरु नानक साहब जी महाराज की वाणी ''ओअंकार निरमल सत वाणि,....'' का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी बारे मेंं जानकारी दी जाएगी। जिसे पूज्यपाद छोटेलाल दास जी महाराज ने लिखा है।
इस भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद) में बताया गया है कि-अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए लोग तरह-तरह के मंत्रों का जप करते हैं, उनमें ओंकार (ॐ) सर्वश्रेष्ठ है। यह ईश्वर का वाचक है। ओंकार से ही सारी सृष्टि हुई है। Omkar Mahima, ओंकार (ॐ) उपासना की विधि और महिमा । इन बातों की जानकारी के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान पायेंगे। जैसे कि- onkaar ke bhajan, onkaar ke baare mein bataie, onkaar ke naam ke kar, onkaar ke naam se wark, onkaar ke phaayade, onkaar ke baare mein, आदि। इन बातों को जानने के पहले, आइए ! सदगुरु बाबा नानक साहब जी महाराज का दर्शन करें।
सदगुरु बाबा नानक साहब जी महाराज कहते हैं कि " ओंकार ( आदिशब्द ) निर्मल ( त्रय गुण - रहित ) और सच्ची वाणी ( सत्शब्द , परिवर्त्तन - रहित शब्द ) है । उसी से सभी खानियाँ ( अण्डज , पिण्डज , उष्मज और अंकुरज - प्राणियों के ये चार वर्ग ) उत्पन्न हुई हैं । प्रत्येक खानि में जीवों का बहुत - बहुत विस्तार है । जीवों के विस्तार को स्वयं सिरजनहार ( परमात्मा ) जानता है ।.... " इसे अच्छी तरह समझने के लिए इस शब्द का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है; उसे पढ़ें-
सद्गुगुरु बाबा नानक साहब की वाणी
( प्राण - संगली, भाग १ )
॥राग रामकली , महला १॥ ( शब्द १ )
॥ मूल पद्य ॥
ओअंकार निरमल सत वाणि । तांते होई सगली खाणि ॥ खाणि खाणि महिं बहु विस्तारा । आपे जाने सिरजनहारा ॥ सिरजनहारे के केते भेष । भेष भेष महि रहै अलेष ॥१ ॥ एकहि नाम जपहु मन माला । नानक सिमरहु गुर गोपाला ॥रहाउ ॥ ओअंकार हुआ परगास । साजे धरती धउल आकास ॥ साजे मेरु मंदिर कविलास । साजे पिंड धरे बिच सास ॥ साज्या काल न छोड़े पास । छूटै पिंड उड़ावै हांस ॥२ ॥ ओअंकार हुआ चानायल । तदहुँ तीने देव उपायल । महादेव कीता भंडारी । ब्रह्मा चारि वेद वीचारी । X X बिस्नु हढाउन दस औतारी ॥ आप निरालम करे तमासा । ज्यों ज्यों हुकम तिर्फे परगासा ॥३ ॥ राचै शब्द सुशब्दै जेंह । गुरुमुख ताकौ मिलै सनेह ॥ पृ ०३ ॥
शब्दार्थ - तांते - उससे । सगली - सकल , सभी । भेष - रूपा अलेष - अलेख , अनंत , अलक्ष्य , स्थूल या सूक्ष्म दृष्टि से न देखनेयोग्य , गुप्त , छिपा हुआ । साजे - सिरजा , बनाया । परगास प्रकाश । धउल - धवल , उजला , साफ , स्वच्छ । मेरु - सुमेरु पर्वत । मंदिर - निवास स्थान । कविलास - कैलास पर्वत । सास साँस , प्राण । हांस - हंस , जीवात्मा । चानायल चाँदनी , प्रकाश । तदहुँ उसी ने , उसी से । उपायल उत्पन्न किया । हढाउन फिरनेवाला , नाचनेवाला । निरालम निराला , अलग , निर्लेप , असंग । तमासा तमाशा , खेल , सृष्टि । हुकम आज्ञा , अनाहत नाद । तिर्वै तब , तभी । राचै अनुरक्त होता है , लीन होता है । शब्द- अनहद नाद । सुशब्द - सुंदर शब्द , श्रेष्ठ शब्द , अनाहत नाद । जह - जो । गुरुमुख वह शिष्य जिसकी वृत्ति सदा गुरु की ही ओर लगी रहती हो ।
भावार्थ -
ओंकार ( आदिशब्द ) निर्मल ( त्रय गुण - रहित ) और सच्ची वाणी ( सत्शब्द , परिवर्त्तन - रहित शब्द ) है । उसी से सभी खानियाँ ( अण्डज , पिण्डज , उष्मज और अंकुरज - प्राणियों के ये चार वर्ग ) उत्पन्न हुई हैं । प्रत्येक खानि में जीवों का बहुत - बहुत विस्तार है । जीवों के विस्तार को स्वयं सिरजनहार ( परमात्मा ) जानता है । सृष्टिकर्ता परमात्मा के कितने ही रूप हैं । प्रत्येक रूप में वह गुप्त ( अव्यक्त ) रूप से रहता है ॥१ ॥ जो ओंकार अपने ढंग का एक - ही - एक नाम है , मन - माला पर उसका जप करो । गुरु नानकदेवजी महाराज कहते हैं कि इस नाम के द्वारा गुरु - गोपाल ( गुरु - रूप परमात्मा ) का सुमिरन करो ।। रहाउ ।। ओंकार से प्रकाश उत्पन्न हुआ है । ओंकार ने ही धरती बनायी है और स्वच्छ आकाश भी । उसी ने सुमेरु पर्वत और शिवजी के वास - स्थान कैलास को बनाया है । उसी ने पिण्ड ( प्राणियों के शरीर ) बनाकर उनके बीच साँस ( प्राण ) को स्थापित किया है । उसी ने काल की रचना की है , जो काल कभी किसी का साथ नहीं छोड़ता । वह काल शरीर से हंसरूपी जीवात्मा को छुड़ाकर उड़ा देता है।।२ ।। ओंकार से प्रकाश हुआ है । उसी ओंकार से तीनों देव ( ब्रह्मा , विष्णु और महेश ) उत्पन्न हुए हैं । महादेव ( शिव ) जी को परमात्मा ने अपना भंडारी बनाया है । ब्रह्मा चारो वेदों का विचार करते हैं । विष्णु आदि दस अवतार परमात्मा के संकेत पर नाचनेवाले हैं । स्वयं असंग निर्लेप ) रहकर परमात्मा तमाशा ( सृष्टि ) करता है । जब वह हुक्म करता है ( ओंकार को उत्पन्न करता है ) , तब प्रकाश होता है ( सृष्टि का प्रकटीकरण होता है ) ॥३ ॥ जो गुरुमुख शब्द ( अनहद शब्द ) और सुशब्द ( अनाहत नाद ) में अनुरक्त होता है , उसको परमात्मा का प्यार मिलता है । इति।।
टीका- बाबा लालदास जी महाराज |
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संतवाणी सटीक" के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए लोग तरह-तरह के मंत्रों का जप करते हैं, उनमें ओंकार (ॐ) सर्वश्रेष्ठ है। यह ईश्वर का वाचक है। ओंकार से ही सारी सृष्टि हुई है। Omkar Mahima, ओंकार (ॐ) उपासना की विधि और महिमा। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त लेख का पाठ करके सुनाया गया है।
नानक वाणी भावार्थ सहित
संतवाणी-सुधा सटीक |
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नानक वाणी 20, Omkar Mahima । ओअंकार निरमल सत वाणि । भजन भावार्थ सहित -बाबा लालदास
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
8/05/2020
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