गुरु नानक साहब की वाणी / 18
प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की भारती (हिंदी) पुस्तक "संतवाणी सटीक" एक अनमोल कृति है। इस कृति में बहुत से संतवाणीयों को एकत्रित करके सिद्ध किया गया है कि सभी संतों का एक ही मत है। इसी कृति में संत श्री गुरु नानक साहब जी महाराज की वाणी ''हम घरि साजन आए,....'' का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है। जिसे पूज्यपाद सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज ने लिखा है। यहां उसी के बारे मेंं जानकारी दी जाएगी।
इस भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद) में बताया गया है कि-साधु संतों के दर्शन मात्र से दुर्भाग्य भी सौभाग्य में बदल जाता हैं. संतों के दर्शन से क्या फायदे होते हैं ? संत दर्शन- भक्ति में सहायक होता है। संतों के दर्शन का फल, इन बातों की जानकारी के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान पायेंगे। जैसे कि- संत दर्शन का महत्व, संत दर्शन का फल, संत का दर्शन, संतों का दर्शन, संतों का दर्शन कराए, संत के दर्शन कराए, संत के दर्शन, संत महात्मा का दर्शन,साधु संतों के दर्शन का जूनून,भारत के संत महात्मा, भारत के सबसे बड़े संत, भारत के सिद्ध संत, साधु की परिभाषा, साधु कितने प्रकार के होते हैं, आज के सिद्ध पुरुष, संतों की जानकारी, भारत के सच्चे संत, साधु संत की कथा, भारत के साधु संत, आदि। इन बातों को जानने के पहले, आइए ! सदगुरु बाबा नानक साहब जी महाराज का दर्शन करें।
सदगुरु बाबा नानक साहब जी महाराज कहते हैं कि " हमारे घर में ( सन्न ) मजन आए और उन्होंने हमको मत्य ( परमात्मा ) से मेल मिलाप कराया । उन्होंने यह मेल - मिलाप मुगमता से ही कगया । वह सत्य परमात्मा - हरि मन को बहुत अच्छे लगे और पंच नादों के मिलने में मुख प्राप्त हुआ । वही वस्तु प्राप्त होती है , जिसमे मन लगाया जाता है । प्रतिदिन वह मिलाप होता रहता है . इसमें मन मान गया है अर्थात् गजी हो गया है , और घर - मन्दिर मब सुहावने हो गए हैं । .... " इसे अच्छी तरह समझने के लिए इस शब्द का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है; उसे पढ़ें-
सद्गुगुरु बाबा नानक साहब की वाणी
॥ मूल पद्य ॥
हम घरि साजन आए । साचै मेलि मिलाए ।।
सहजि मिलाए हरि मन भाए , पंच मिले सुखु पाइआ ।
साई वसतु परापति होई , जिसु सेती मनु लाइआ ।।
अनुदिनु मेलु भइआ मनु मानिआ , घर मन्दर सोहाए ।
पंच सबद धुनि अनहद बाजे , हम घरि साजन आए ॥१॥
आवहु , मीत पिआरे । मंगल गावह नारे ।।
सचु मंगल गावहु ता प्रभु भावहु , सोहिलड़ा जुग चारे ।
अपने घरु आइआ थानि सुहाइआ , कारज सबदि सवारे ॥
गिआन महारसु नेत्री अंजनु , त्रिभुवन रूप दिखाइआ ।
सखी मिलहु रसि मंगल गावहु , हम घरि साजन आइआ ॥२॥
मनु तनु अमित भिना । अंतरि पंम रतना ।।
अंतरि रतन पदारश मेरे , परम तत् वीचारो ।
जंत भेख तु सफलिउ दाता , सिरि सिरि देवणहागे ।।
तू जान् गिआनी अंतरजामी , आपे कारण कीना ।
सुनहु सखी मनु मोहनि मोहिआ , तनु मन अंप्रित भीना ।।३।। आतम राम संसाग । साचा खोल , तु मारा ।।
सचु खेलु तुमारा अगम अपाग , तुधु बिनु कउण बुझाए ।
मिध साधिक सिआणे केते , तुधु बिनु कवण कहाए ।।
कालु विकाल भए देवाने , मनु राखिआ गुरि ठाए ।
नानक अवगण सबदि जलाए , गुण संगमि प्रभु पाए ।।४।।
शब्दार्थ - साई- सोई । नारे- उच्च स्वर मे । सोहिलड़ा - एक रागिनी । जंत- जीव । सफलिउ दाता- अच्छा फल देने वाला । जानु= जाता । विकाल= विकराल , भयंकर । ठाए - पास , स्थान में । संगमि - मंग , माथ ।
भावार्थ -
टीका-सद्गुरु महर्षि मेंहीं |
हमारे घर में ( सन्त ) संज्जन आए और उन्होंने हमको सत्य ( परमात्मा ) से मेल मिलाप कराया । उन्होंने यह मेल - मिलाप सुगमता से ही कगया । वह सत्य परमात्मा - हरि मन को बहुत अच्छे लगे और पंच नादों के मिलने में मुख प्राप्त हुआ । वही वस्तु प्राप्त होती है , जिसमे मन लगाया जाता है । प्रतिदिन वह मिलाप होता रहता है . इसमें मन मान गया है अर्थात् राजी हो गया है , और घर - मन्दिर सब सुहावने हो गए हैं । अनहद ध्वनि के पांचों शब्द बजते हैं । हमारे घर में मन्त सज्जन आए हैं॥१।। हे मित्र प्यारे ! आओ , उच्च स्वर से मंगल गाओ । सोहिलड़ा राग में सत्य मंगल का गान करो , जिससे चारो युगों में प्रभु को पाओगे । शब्द - साधना से अपना काम बनाकर निज घर में आते हैं , जो स्थान सुहावना लगता है । ज्ञान का महारस आँख का अंजन ( सुरमा ) है , जिसमे त्रिभुवन का रूप देखने में आता है । मित्रो ! मिलो , रस - मंगल गाओ , हमारे घर में सज्जन आए हैं।।२ ।। मेरा मन और शरीर अमृत से भींगे हुए हैं , अन्दर में प्रेम का रल है और परम तत्त्व का विचार भी मेरे अन्दर में रत्न पदार्थ है । हे प्रत्येक को देनेहारे ! सब जीवों और वेशों का तृ सफल दाता है ।। हे अन्तर्यामी ज्ञाता ! तूने अपने आपको सारी सृष्टि का कारण बनाया है । सुनो मित्रो ! मन को मोहित करनेवालों ने मोह लिया है , तन - मन अमृत से भीगा हुआ है ।३ ।। हे संसार के आत्मा राम ! आपका खेल सत्य है । आपका खेल सत्य है , आप अगम अपार हैं , आपके बिना कौन बुझा - समझा सकता है ? सिद्ध - साधक और चतुर कितने हैं ? अर्थात् बहुत हैं । आपकी कृपा के बिना कौन ऐसे कहलाते हैं । अर्थात् आप ही की कृपा से सिद्ध - साधक और चतुर कहलाते हैं ।। भयंकर काल मस्त हो गया है , मैंने अपने मन को गुरु के पास में रखा है । गुरु नानक कहते हैं , मैंने अवगुणों को शब्द में जला दिया है और सद्गुण को धारण करके प्रभु को पाया है ॥४ ॥ इति ॥
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संतवाणी सटीक" के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि साधु संतों के दर्शन मात्र से दुर्भाग्य भी सौभाग्य में बदल जाता हैं. संतों के दर्शन से क्या फायदे होते हैं ? संत दर्शन- भक्ति में सहायक होता है। संतों के दर्शन का फल। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त लेख का पाठ करके सुनाया गया है।
नानक वाणी भावार्थ सहित
संतवाणी-सटीक |
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नानक वाणी 18, Fruit of true saint darshan । हम घरि साजन आए । भजन भावार्थ सहित -महर्षि मेंहीं
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
8/04/2020
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