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नानक वाणी 17, Who is the true saint satguru । घर महि घरु देखाइ देइ । भजन भावार्थ सहित -सद्गुरु महर्षि मेंहीं

गुरु नानक साहब की वाणी / 17

प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की भारती (हिंदी) पुस्तक "संतवाणी सटीक" एक अनमोल कृति है। इस कृति में बहुत से संतवाणीयों को एकत्रित करके सिद्ध किया गया है कि सभी संतों का एक ही मत है। इसी कृति में  संत श्री गुरु नानक साहब जी महाराज   की वाणी  ''घर महि घरु देखाइ देइ,....'' का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है। जिसे पूज्यपाद  सद्गुरु महर्षि  मेंहीं परमहंस जी महाराज ने लिखा है। यहां उसी के बारे मेंं जानकारी दी जाएगी।

इस भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद)  में बताया गया है कि- Who is True Sant?  WHO IS SADGURU? Who is True Sadguru? कौन है सच्चा गुरू ? कौन हैं सच्चा गुरु और कौन है पाखण्डी ?  इन बातों की जानकारी  के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान पायेंगे। जैसे कि- सच्चे सतगुरु की पहचान क्या है ? सच्चे सतगुरु के लक्षण क्या है? सतगुरु बाबा का भजन,सतगुरु सतगुरु,सतगुरु महाराज के भजन,सतगुरु भजन डायरी, आदि। इन बातों को जानने के पहले, आइए !  सदगुरु बाबा नानक साहब जी महाराज का दर्शन करें। 


इस भजन के पहले वाले भजन ''सागर महि बूंद बूंद महि सागरु,...'' को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए   यहां दबाएं।

क्या है सच्चे सद्गुरु की पहचान?  पर चर्चा करते सतगुरु बाबा नानक साहब जी महाराज।
कौन है सच्चा सतगुरु? पर चर्चा करते बाबा नानक

Who is the true saint satguru

सदगुरु बाबा नानक साहब जी महाराज कहते हैं कि " जो घर में दिखला दे , वह सुजान पुरुष सद्गुरु है । पाँच शब्दों की ध्वनियों का वहाँ गुंजार तीक्ष्ण शब्द के रूप में होता रहता है । वहाँ घर के अन्दर में अर्थात् शरीर के अन्दर शरीर में द्वीप , सब लोक , सब पाताल , सब खण्ड और सब मण्डल हैं ; ....  "   इसे अच्छी तरह समझने के लिए इस शब्द का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है; उसे पढ़ें-


सद्गुगुरु बाबा नानक साहब की वाणी

 ॥ मूल पद्य ॥

घर महि घरु देखाइ देइ , सो सतगुरु परखु सुजाणु । - पंच सबदु धुनिकार धुनि , तह बाजै सबदु निसाणु ।।  दीप लोअ पाताल तह , खण्ड मण्डल हैरानु । तार घोर वाजिंत्र तह , साचि तखति सुलतानु ।। सुखमन कै घरि रागु सुनि , सुन मण्डल लिव लाइ । अकथ कथा वीचारिऔ , मनसा मनहि समाई ।। उलटि कमलु अमृत भरिआ , इहु मन कतहुँ न जाइ । अजपा जाप न बीसरै , आदि जुगादि समाइ ।। सभि सखिया पंचे मिलै , गुरमुखि निज घरि वासु । सबदु खोजि इहु घरु लहै , नानक ताका दासु ।

 शब्दार्थ - निसाणु - निशान , तीक्ष्ण , तेज । लोअ - लोक । तह - तहाँ । वाजिंत्र - बाजता । पंचे - पाँच नादों से । 

भावार्थ -
सतगुरु बाबा नानक साहब की वाणी के टीकाकार सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज।
टीका-सद्गुरु महर्षि मेंहीं
जो घर में दिखला दे , वह सुजान पुरुष सद्गुरु है । पाँच शब्दों की ध्वनियों का वहाँ गुंजार तीक्ष्ण शब्द के रूप में होता रहता है । वहाँ घर के अन्दर में अर्थात् शरीर के अन्दर शरीर में द्वीप , सब लोक , सब पाताल , सब खण्ड और सब मण्डल हैं ; यह आश्चर्य है । परम प्रभु के सत्य पद से गहरे ध्वनि - गर्जन का तार बजता रहता है ।। शून्य - मण्डल में लौ लगाकर सुषुम्ना के घर में शब्द सुनो । इस अकथ कथा का विचार करो , मन की इच्छाएं मन में विलीन हो जाय ।। बहिर्मुख से अन्तर्मुख हो उलटकर अन्तर के मण्डल में अमृत से भर जाओ , तो यह मन वहाँ से कहीं नहीं जायगा - शान्त और स्थिर हो जायगा । अजपा जप* नहीं भूलना चाहिए , उसमें सदा समाकर रहना चाहिये । समस्त मित्र** गण पंच शब्दों से मिले । गुरु - मुख का आत्म - पद में निवास होता है । जो शब्द की खोज करके आत्म - पद को प्राप्त करते हैं , गुरु नानक साहब कहते हैं कि मैं उनका दास हूँ । 
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* नाक के छिद्रों में श्वास - प्रश्वास आते - जाते रहते हैं । भीतर खींचते समय ' सो और बाहर छोड़ते समय ' ह ' का आरोपण करके उसी का ख्याल करते रहने को बहुत लोग ' अजपा जप ' कहते हैं , जो बिना जपे नहीं हुआ , जैसा कि ' अजपा जप ' शब्द का अर्थ ' बिना जपे हुए जप ' होता है । परन्तु इससे विशेष अनहद ध्वनि में सुरत रखना ' अजपा ' है , क्योंकि इसमें किसी प्रकार के शब्द की भावना मन में नहीं रखनी पड़ती है और न उसके होने के लिए श्वास - प्रश्वास की तरह की स्थूल वायु की आवश्यकता रहती है । यह अनहद ध्वनि भावना - विशेष से नहीं बनती है और न यह आरोपित ध्वनि है । यह तो वह सहज ध्वनि है , जिसे साधक गुरु - गम होकर अपने अन्दर में ग्रहण करता है । ' जाप अजपा हो सहज धुन परख गुरु - गम धारिये । ' -सन्त कबीर साहब । ' अनहद अपने साथ है , अजपा ताको नाम । अमल करो अपनाइ के , अमर नाम घर ठाम ।। ' -श्रीलक्ष्मीपतिजी महाराज ।

 ** गुरु नानकदेवजी के मित्र उन्हीं की तरह के सन्तों को जानने चाहिये ।👃


इस भजन के बाद वाले भजन  ''अउहठि हसत मड़ी घरु छाइआ,....''   को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए   यहां दबाएं।


प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संतवाणी सटीक" के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि  Who is True Sant?  WHO IS SADGURU? Who is True Sadguru? कौन है सच्चा गुरू ? कौन हैं सच्चा गुरु और कौन है पाखण्डी ? इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने।  इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त लेख का पाठ करके सुनाया गया है।



नानक वाणी भावार्थ सहित
संतवाणी-सटीक (पुस्तक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज कृत)
संतवाणी-सटीक
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नानक वाणी 17, Who is the true saint satguru । घर महि घरु देखाइ देइ । भजन भावार्थ सहित -सद्गुरु महर्षि मेंहीं नानक वाणी 17,  Who is the true saint satguru । घर महि घरु देखाइ देइ । भजन भावार्थ सहित -सद्गुरु महर्षि मेंहीं Reviewed by सत्संग ध्यान on 8/03/2020 Rating: 5

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