गुरु नानक साहब की वाणी / 44
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प्रणवो आदि ऐकंकारा || एक ओंकार की महिमा
१ ॐ वाह गुरुजी की फते ( श्री मुख वाक पातिशाही १० अकाल ऊसतत बिचों ) त्व प्रसादि । चउपई
शब्दार्थ-- ऐकंकारा - एक ओंकार , वह एक शब्द जिससे सारी सृष्टि हुई है । महीअल - महि , में । पसारा - पसार , फैलाव , रचना । हसत - हस्ती , हाथी । जिह - जिसने । अविगामी- जो गमन नहीं करता है । इक सर- एक समान । राव- राजा । रंक- दरिद्र । अद्वै - अद्वितीय , बेजोड़ । अंतरजामी- अंतर्यामी , सबके भीतर रमण करनेवाला , सबके अंतःकरणों की बात जाननेवाला । अछे - अक्षय , अविनाशी । अनभेषा - अरूप , रूप - रहित , शरीर - रहित । वरन - वर्ण , रंग । तात - पिता । नेरा - नजदीक , न्यारा , अलग । अनहद- असंख्य , असीम । उप इन्द्र- उपेन्द्र , विष्णु । ( इन्द्र के छोटे भाई वामन के रूप में अवतार लेने के कारण भगवान विष्णु का एक नाम उपेन्द्र भी है । ) उपाइ = उत्पन्न करके । खपाए= नष्ट कर कर दिया । चत्रदस - चतुर्दश , चौदह ।
( अन्य शब्दों की जानकारी के लिए "संतमत+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश" देखें )
भावार्थ-- सृष्टि का आदिशब्द एक ओंकार ही प्रणव है । जल और स्थल में अर्थात् सर्वत्र उसने अपना फैलाव किया है ( सर्वत्र वह व्याप्त है ) | सबका आदितत्त्व परम पुरुष परमात्मा अविगत ( इन्द्रियों से नहीं जाननेयोग्य अथवा सर्वव्यापक ) और अविनाशी है । उसने अपनी ज्योति से चौदहो लोकों को प्रकट किया है अथवा चौदहो लोकों में उसकी ज्योति फैली हुई है ॥ १ ॥
वह हाथी से लेकर कीड़े - मकोड़े तक के बीच समाया हुआ है और राजा तथा दरिद्र - दोनों को एक समान अथवा एक भाव से जानता ( देखता ) है । वह अद्वय ( एक - ही - एक , बेजोड़ ) , चर्मचक्षुओं तथा दिव्यदृष्टि से नहीं देखने योग्य , क्षर - अक्षर पुरुषों से परे परम पुरुष और कहीं गमन करनेवाला नहीं है । वह सृष्टि के कण - कण में रमण करनेवाला ( सर्वव्यापक ) है अथवा वह सबके अंतःकरणों की बात जाननेवाला है॥ २ ॥
उसका स्वरूप आँखों से नहीं दिखाई पड़नेवाला , अविनाशी और देह - रहित है । उसे किसी से आसक्ति नहीं है और न उसके कोई रंग या रूपरेखा है । रंग और चिह्न - सबसे ही यह अलग है । वह सबका आदितत्त्व , परम पुरुष , अद्वय ( एक - ही - एक ) और विकार रहित है ॥ ३ ॥
उसके न तो कोई रंग - चिह्न है और न कोई जाति - पाँति ; इसी तरह उसके न तो कोई शत्रु मित्र है और न कोई माता - पिता । उसका जल और थल में - सर्वत्र वास है । वह सबसे दूर और सबसे निकट भी है || ४ ||
( अज्ञानियों के लिए परमात्मा दूर है और आत्मज्ञानियों के लिए नजदीक ) अनहद ध्वनियाँ उसके सगुण रूप हैं अथवा वह अनंत स्वरूपवाला है और अनाहत शब्द उसकी निर्गुण वाणी है । उस परमात्मा के चरणों की शरण में लक्ष्मी , सरस्वती , काली , दुर्गा , पार्वती आदि आद्या शक्तियाँ रहती हैं । ब्रह्मा और विष्णु आदि ईश्वर - कोटि के देवताओं ने भी उसका अंत नहीं पाया ; उसके लिए चार मुखोंवाले ब्रह्मा ने वेदों में ' नेति - नेति ' ( अंत नहीं , अंत नहीं अथवा यह नहीं , यह नहीं ) कहा || ५ ||
उसने करोड़ों इन्द्र और विष्णु बनाये । करोड़ों ब्रह्मा , इन्द्र आदि को उत्पन्न करके उसने पुनः उन्हें नष्ट कर दिया । वह चौदहो लोक हँसी - खेल में ही ( बिना परिश्रम के ही ) बना लेता है अथवा वह चौदहो लोक अपने खेल - लीला के लिए बनाता है और फिर उन्हें अपने ही बीच ( अपने में ) मिला लेता है || ६ ||
टिप्पणी - १. गीता अध्याय १५ में जड़ प्रकृति मंडल क्षर पुरुष और चेतन प्रकृति अक्षर पुरुष कही गयी है । इन दोनों से परे परमात्मा उत्तम पुरुष या पुरुषोत्तम कहा गया है ।
२. बाह्य जगत् में परमात्मा का कोई चिह्न नहीं है । सारशब्द ही परमात्मा का वास्तविक चिह्न है , अनहद ध्वनियों के बीच उसकी पहचान करके साधक परमात्मा तक पहुँच जाता है । यह सारशब्द कैवल्य मंडल का केन्द्रीय शब्द है ।
३. ' पातशाही १० ' शीर्षकवाला पद्य दसवें गोविन्द गुरु सिंहजी का समझा जाना चाहिए । ∆
आगे है-
॥ सवैया ॥
काहू लै पाहन पूज घरो सिर , काहू लै लिंगु गरे लटकाइउ || काहू लखिऊँ हरि अवाची दिसा महि , काहू पछाह को शीश निवाइउ || कोठ बुतान कौ पूजत है पसु , कोठ मृतान कठ पूजन धाइउ ॥ कूर क्रिया उरझिठ सबही जगु श्री भगवान को भेद न पाइउ || १० ||
शब्दार्थ - काहू- कोई । पाहन - पाषाण , पत्थर । लिंगु - लिंग , चिह्न , प्रतीक । गरे - गले में । अवाची दिसा नीचे की ओर या दक्षिण की ओर । ( पंजाब से.....
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संतवाणी-सुधा-सटीक पुस्तक में उपरोक्त वाणी निम्न चित्र की भांति प्रकाशित है-
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संतवाणी-सुधा-सटीक" के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि ओम शब्द का महत्व क्या है? ओम में कितनी शक्ति है? ओम का शाब्दिक अर्थ क्या है?ओम की महिमा क्या है? ओम का अर्थ क्या होता है, ओ३म् की महिमा पर पाँच पंक्तियाँ लिखिए, ॐ की सिद्धि, ओंकार स्तोत्र, ॐ की उत्पत्ति कहां से हुई, ओम का महत्व, इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त लेख का पाठ करके सुनाया गया है।
संतवाणी-सुधा सटीक |
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