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P02ख प्रातः+अपराह्न+सायंकालीन स्तुति-प्रार्थना के पद्य -सब संतन्ह की बड़ी बलिहारी- में आये संतों के परिचय

महर्षि मेँहीँ पदावली / 02 (ख)

     प्रभु प्रेमियों ! 'सब संतन्ह की बड़ी बलिहारी' पोस्ट का पहला भाग हमलोग पढ़ चुके हैं। जिसमें सन्त-स्तुति  में आए शब्दों के शब्दार्थ, भावार्थ संपूर्ण पाठ करते हुए टिप्पणी में भगवान बुद्ध, आदि गुरु शंकराचार्य, स्वामी रामानंद और कबीर साहब का परिचय प्राप्त कर चुके हैं।  इस पोस्ट में बचे हुए संतो के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे.

इस पोस्ट के  पहले  भाग को पढ़ने के लिए   👉  यहां दबाएं

संतों के तस्वीर
संतों के तस्वीर

प्रातः+अपराह्न+सायंकालीन स्तुति-प्रार्थना के पद्य "सब संतन्ह की  बड़ि बलिहारी'

     प्रभु प्रेमियों ! इसमें संतौं की महिमा, संत की कथा, संत-महात्मा की कथा, संत कौन है? कहा रहते हैं? क्या करते हैं? कैसे जीवन व्यतीत किए? इनकी वाणियां, रचना और निर्वाण कब हुआ? आदि बातों के साथ-साथ निम्नलिखित प्रश्नों के भी कुछ-न-कुछ समाधान मिलेगा जैसे कि- संतमत सत्संग की प्रातः कालीन स्तुति विनती में संत स्तुति में आए संतों के विवरण,  पदावली में आए संतो के वर्णन, महर्षि मेँहीँ पदावली के संत, संत-स्तुति में आए संतो के विवरण, संतो के गुण, संत कैसे जीवन व्यतीत किए, इनकी वाणियां, रचना और निर्वाण कब हुआ,  आदि बातोंं को समझेंगे.

     आप लोगों की जानकारी के लिए बता दें कि इस संत स्तुति को प्रातःकालीन ईश-स्तुति के बाद तथा अपराहन् एवं सायं कालीन स्तुति के प्रारंभ में ही इस पद को गाया जाता है। 

 सब संतन्ह की,... संत-स्तुति के टिप्पणियों के शेष भाग नीचे में दिये जा रहे हैं- 

९. संत सुन्दरदासजी ( छोटे )

 
संत सुन्दरदासजी
संत सुन्दरदासजी
का जन्म जयपुर राज्य की प्राचीन राजधानी द्यौसा नगर में वि ० संवत् १६५३ में माता सती के गर्भ से वैश्यकुल में हुआ था । इनके पिता का नाम कोई चोखा और कोई परमानन्द बतलाते हैं । काशी में रहकर संत सुन्दरदासजी ने १४ वर्षों तक शास्त्रों का गहन अध्ययन किया था । संत दादू दयालजी इनके गुरु थे । रज्जबजी और जगजीवन साहब इनके गुरुभाई थे । ' ज्ञान - समुद्र ' और ' सुन्दर - विलास ' इनके दो प्रसिद्ध ग्रंथ हैं । संतों में ये सबसे अधिक पढ़े - लिखे कहे जाते हैं । इनका देहावसान सं ० १७४६ वि ० में ९ ३ वर्ष की आयु में साँगानेर में हुआ ।

भक्त सूरदास जी महाराज
भक्त सूरदासजी
१०. भक्त सूरदासजी का जन्म सारस्वत ब्राह्मण - कुल में १४७८ ई ० के लगभग दिल्ली के समीप सोही नामक गाँव में हुआ था । कुछ लोग इनका जन्म - स्थान मथुरा - आगरा - सड़क पर स्थित रुनकता नामक गाँव बतलाते हैं । इनके पिता का नाम रामदास था । सूरदासजी जन्मांध बताये जाते हैं । महाप्रभु वल्लभाचार्यजी को इन्होंने अपना गुरु बनाया था । सख्य भाव से इन्होंने श्रीकृष्ण की भक्ति की । सूरसागर , सूरसारावली और साहित्यलहरी इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं । व्रजभाषा में इन्होंने रचनाएँ की हैं । श्रीकृष्ण की बाल - लीला का इनके द्वारा किया गया वर्णन विश्वसाहित्य में अद्वितीय है । इनका देहान्त सन् १५८३ ई ० में माना जाता है । 0 गो • तुलसीदासजी और सूरदासजी को हिन्दी साहित्य के विद्वानों ने सगुणभक्तों की कोटि में रखा है , निर्गुण भक्तों ( -संतों ) की कोटि में नहीं ; परन्तु सद्गुरु महर्षि में ही परमहंसजी महाराज ने इनके ही कुछ पद्यों के आधार पर इन्हें भक्ति की पराकाष्ठा तक पहुँचा हुआ सन्त माना है । यह सच है कि इन दोनों संतों ने सगुण ब्रह्म के चरित का ही विशेष वर्णन किया है ; परन्तु इससे यह नहीं समझना चाहिए कि इनकी गति निर्गुण ब्रह्म तक नहीं थी ।

 ११. काशी - निवासी भक्त श्वपच का असली नाम सुदर्शन या वाल्मीकि बताया जाता है । ये जाति के श्वपच ( डोम ) थे , इसीलिए लोग इन्हें भक्त श्वपच भी कहकर पुकारते हैं । ये वे ही संत हैं , जिनको युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ में आदरपूर्वक बुलवाकर भोजन कराया गया , तब घंटा बजा , जो यज्ञ के पूर्ण होने का सूचक था ।

संत रविदास जी महाराज
संत रैदासजी
१२. संत रैदासजी का समय विक्रम की १५-१६वीं शताब्दी माना जाता है । ये जाति के चमार थे और इनके परिवार के लोग काशी के आस - पास ढोरों के ढोने का रोजगार करते थे । ये भी काशी में रहकर जूते बनाकर बेचने का काम करते थे । स्वामी रामानन्द इनके गुरु थे ; पिता का नाम रग्घू और माता का नाम घुरबिनिया बताया जाता है । रैदासजी गृहस्थाश्रम में विरक्त भाव से रहे । मेवाड़ की झाला - रानी - ने इनकी शिष्यता ग्रहण की थी । मीराबाई ने भी इन्हें गुरु - रूप में याद किया है । इनके पद्यों का संग्रह ' रैदास की बानी ' नाम से बेलवीडियर प्रिन्टिंग वर्क्स , इलाहाबाद से छपा है ।

१३. संत जगजीवन साहब ( द्वितीय ) 

संत जगजीवन साहब
संतजगजीवनसाहब
का जन्म बाराबंकी जिले के सरदहा नामक गाँव में एक चंदेल क्षत्रिय - कुल में हुआ था ; जन्म - वर्ष १७२७ वि ० सं ० बताया जाता है । इनका विवाह हुआ था । ये सरदहा छोड़कर कोटवा में रहने लगे थे , जो सरदहा से २ कोस की दूरी पर है । इनके गुरु बुल्ला साहब थे । जगजीवन साहब से ' सत्तनामी सम्प्रदाय ' चला । इनका देहान्त सं ० १८१८ वि ० में कोटवा में हुआ । इनकी वाणियों का संकलन दो भागों में बेलवीडियर प्रिन्टिंग वक्र्स , इलाहाबाद से प्रकाशित हुआ ।

संत पलटू साहब जी महाराज
संत पलटू साहब
१४. संत पलटू साहब विक्रम की १ ९वीं सदी में विद्यमान थे । इनका जन्म फैजाबाद जिले के नगपुर जलालपुर में काँ बनिया - कुल में हुआ था । इन्होंने संत भीखा साहब के शिष्य गोविन्द साहब को अपना गुरु बनाया था । ये अयोध्या में रहा करते थे । इनकी रचनाओं में कुंडलियाँ अधिक प्रसिद्ध हैं ।



परम संत सतगुरु बाबा देवी साहब जी महाराज
बाबा देवी साहब
सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज के सद्गुरु  थे , जो मुरादाबाद के अताई महल्ले में रहा करते थे और वहीं से इधर - उधर सत्संग - प्रचारार्थ भी जाया करते थे । इनका जन्म सन् १८४१ ई ० के मार्च महीने में किसी दिन हुआ था । इनके पिता मुंशी महेश्वरीलालजी हाथरस ( जिला अलीगढ़ ) में कानूनगोई करते थे । मुंशीजी की संतान मर जाया करती थी । बाबा देवी साहब - जैसे पुत्ररत्न की प्राप्ति मुंशीजी को संत तुलसी साहब के आशीर्वाद से हुई थी । तुलसी साहब ने बाबा देवी साहब को इनकी बाल्यावस्था में मस्तक पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया था । बाबा देवी साहब ने विवाह नहीं किया था । राधास्वामीमत के दूसरे आचार्य रायबहादुर शालिग्राम से इनका संपर्क था । १८८० ई ० में ये मुरादाबाद आकर रहने लगे । सद्गुरु महर्षि में ही परमहंसजी महाराज का कथन है कि " बाबा देवी साहब ने न तो संत तुलसी साहब से दीक्षा ली थी और न वे तुलसी साहब के मत के आचार्य ही थे । बाबा देवी साहब का शब्दयोग - संबंधी विचार तुलसी साहब के शब्दयोग - संबंधी विचार से मेल नहीं खाता है । " ( देखें , भावार्थ - सहित घटरामायण - पदावली , पृ ० ३८ ) बाबा साहब ने तुलसी साहब की ' घटरामायण ' छपवायी थी । उसमें इनकी लिखी हुई भूमिका है । इन्होंने ' रामचरितमानस ' के बालकांड के आदि - भाग तथा उत्तरकांड के अन्तिम भाग को टीका ' बाल का आदि और उत्तर का अन्त ' नाम से की थी । इन्होंने कोई नया मत नहीं चलाया । ये भी सन्तमत का ही प्रचार करते थे । १ ९ जनवरी , १ ९ १ ९ ई ० , रविवार को इनका देहान्त मुरादाबाद में हुआ ।
१६. दूसरे पद्य के प्रत्येक चरण में ३२ मात्राएँ हैं ; १६-१६ पर यति और अन्त में दो गुरु वर्ण । यह मात्रिक सवैया का चरण है। ∆ 

 ( पदावली के सभी छंदों के बारे में विशेष जानकारी के लिए पढ़ें-- LS14 महर्षि मँहीँ-पदावली की छन्द-योजना ) 


आगे हैं--

पूज्यपाद महर्षि श्री धर जी महाराज  और  पूज्यपाद महर्षि श्री संतसेवी जी महाराज  द्वारा की गई सब संतन्ह की बड़ी बलिहारी. का टीका--- इस पोस्ट को पढ़ने के लिए   👉 यहाँ दवाएँ.


पदावली भजन नं. 3 स्तुति-प्रार्थना का तीसरा पद्य "मंगल मूरति सतगुरू,..." को शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी सहित पढ़ने के लिए   👉 यहां दबाएं।


प्रात:+सायंकालीन प्रार्थना में आए "प्रेम-भक्ति गुरु दीजिए..." वाला जो पद्य है । उसको भावार्थ सहित पढ़ने के लिए   👉 यहां दबाएं।


'महर्षि मेँहीँ पदावली  शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी-सहित' पुस्तक में उपरोक्त भजन नंबर 2 का लेख निम्न प्रकार से प्रकाशित है--

पदावली भजन 1+2


पदावली भजन 2क

पदावली भजन 2ख

पदावली भजन 2ग

पदावली भजन 2घ
पदावली भजन 2च

पदावली भजन 2+3




     प्रभु प्रेमियों !  "महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी सहित" नामक पुस्तक  से इस भजन के शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी द्वारा आपने जाना कि  प्रातः एवं सायंकालीन स्तुति विनती में आये संत-महात्माओं की संक्षिप्त जानकारी और वे कैसे जीवन व्यतीत किए? इनकी वाणियां, रचना और निर्वाण कब हुआ? इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस पद्य का पाठ किया गया है उसे सुननेे के लिए निम्नांकित वीडियो देखें।



महर्षि मेंहीं पदावली, शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी सहित।
महर्षि मेँहीँ पदावली.. 
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P02ख प्रातः+अपराह्न+सायंकालीन स्तुति-प्रार्थना के पद्य -सब संतन्ह की बड़ी बलिहारी- में आये संतों के परिचय P02ख   प्रातः+अपराह्न+सायंकालीन स्तुति-प्रार्थना के पद्य -सब संतन्ह की बड़ी बलिहारी- में आये संतों के परिचय Reviewed by सत्संग ध्यान on 1/06/2018 Rating: 5

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