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P05 || अव्यक्त अनादि अनन्त अजय भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी || इसमें ॐ कार की महिमा है

महर्षि मेँहीँ पदावली / 05

     प्रभु प्रेमियों ! संतवाणी अर्थ सहित में आज हम लोग जानेंगे- संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "महर्षि मेँहीँ पदावली" जो हम संतमतानुयाइयों के लिए गुरु-गीता के समान अनमोल कृति है। इस कृति के 5 वें पद्य  "अव्यक्त अनादि अनन्त अजय,.....''  का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के बारे में । जिसे पूज्यपाद लालदास जी महाराज नेे किया है।

इस पद को संतमत सत्संग की प्रातःकालीन स्तुति-विनती के रूप में गाते हैं। इसके पहले वाले पदावली भजन नं. 4 को पढ़ने के लिए  👉 यहाँ दवाएँ. 


ओंकार  की चर्चा में गुरुदेव
ओंकार  की चर्चा में गुरुदेव

Praise and attention of ॐ, "अव्यक्त अनादि अनन्त अजय,...' शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी


    प्रभु प्रेमियों  !  सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज के मुखारविंद से स्वत: स्फूर्त इस ओंकार की महिमा वाले पदावली भजन नंबर 5 की बड़ी महिमा है। इस भजन, कविता, गीत, भक्ति भजन, पद्य, वाणी, छंद का गायन करते हुए ऐसा लगता है कि महारी अंतरआत्मा से एक प्रभाव मय ध्वनि निकल रही है, जो हमारी तन-मन को प्रफुल्लित कर रहा है. इस ओंकार पद्य की स्तुति, कथा-कीर्तन, ध्यान, उत्पत्ति और इसके विशेष चिंतन का अपार फल मिलता है. इसका सही उच्चारण साधक साधना में ही कर और सुन सकते हैं. इसका ध्यान करने से परमात्मा की प्राप्ति होती है. 

     सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज जी  कहते हैं- "संतमत का मूल आधार शब्द है । शब्द से ही ईश्वर की प्राप्ति और मुक्ति संतों ने बताई है। संतमत में शब्द ही श्रेष्ठ है । जो शब्द की महिमा और विशेषता को नहीं जानता वह संतमत को नहीं जानता है। Praise and attention of , "अव्यक्त अनादि अनन्त अजय.." इस शब्द की चर्चा में पुज्यपाद छोटेलाल बाबा ने एक पुस्तक ही लिख डाली है। जो "संतमत का शब्द विज्ञान'' नाम से प्रकाशित है। जिनको ओंकार की महिमा के बारे में विस्तार से जानना है। वे इस पुस्तक को अवश्य पढ़ें। यहां इस भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है। उसे पढ़े-


प्रातःकालीन नाम - संकीर्तन

 ( 5 ) 

अव्यक्त अनादि अनन्त अजय , 
          अज आदि मूल परमातम  जो । 
Omkar
ओंकार
ध्वनि प्रथम स्फुटित परा धारा , 
          जिनसे कहिये स्फोट है सो ॥१ ॥ 
है स्फोट वही उद्गीथ वही , 
          ब्रह्मनाद शब्दब्रह्म ओ३म् वही ।
अति मधुर प्रणव - ध्वनि धार वही , 
           है  परमातम  प्रतीक  वही ॥२ ॥ 
प्रभु का ध्वन्यात्मक नाम वही , 
          है सार शब्द सत्शब्द वही । 
है सत् चेतन अव्यक्त वही , 
          व्यक्तों में व्यापक नाम वही ॥३ ॥ 
है सर्वव्यापिनि ध्वनि राम वही , 
          सर्व - कर्षक हरि कृष्ण नाम वही । 
भक्तों संग सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज
भक्तों संग सद्गुरुदेव
है परम प्रचण्डिनि शक्ति वही , 
          है शिव शंकर हर नाम वही ॥४ ॥ 
पुनि रामनाम है अगुण वही , 
          है अकथ अगम पूर्णकाम वही । 
स्वर - व्यंजन - रहित अघोष वही , 
          चेतन ध्वनि - सिन्धु अदोष वही ॥५ ॥ 
है एक ओ३म् सत्नाम वही , 
          ऋषि - सेवित प्रभु का नाम वही । 
          मुनि - सेवित गुरु का नाम वही । 
भजो ॐ ॐ प्रभु नाम यही , 
          भजो ॐ ॐ 'मेंहीं ' नाम यही ॥६ ॥

शब्दार्थ

     अव्यक्त ( अ + व्यक्त ) = जो व्यक्त नहीं है , जो प्रत्यक्ष नहीं है , जो इन्द्रियों के ग्रहण में नहीं आ पाए , परम अव्यक्त - परमात्मा । अनादि ( अन् + आदि ) = आदि - रहित , आरंभ - रहित , आदि - मध्य - अन्त - रहित , अपूर्व , जिसके पहले दूसरा कोई तत्त्व नहीं हो , जिसका कहीं आरंभ नहीं हो , उत्पत्ति रहित । ( देश - काल से परे परमात्मा के पूर्व परमात्मा से भिन्न दूसरा कुछ नहीं था । ) अनन्त ( अन् - अन्त ) = अन्त - रहित , जिसका कहीं अन्त नहीं है , जो आदि - मध्य और अन्त - रहित है , जिसका कभी अन्त ( नाश ) नहीं हो । 
शब्दार्थकार-बाबा लालदास जी महाराज
शब्दार्थकार- बाबा लालदास जी
अजय = अजेय , जो किसी से जीता न जा सके , जो किसी के द्वारा शासित न हो सके ; भाव यह कि जो अपरंपार शक्ति - युक्त है । अज ( अ+ज ) = अजन्मा , जन्म - रहित , जो किसी से जनमा हुआ ( उत्पन्न ) नहीं है , जो कभी जन्म नहीं लेता । आदि = आरंभ , आदितत्त्व , जो सभी उत्पत्तिशील पदार्थों अथवा सृष्टि के पहले से विद्यमान है । मूल = जड़ , जो सबकी जड़ हो , जो सबका आधार हो , जो सबकी उत्पत्ति का मूलकारण हो , जो सबके मूल में अवस्थित हो , जो सबके पहले से विद्यमान हो ।स्फुटित = फूटा हुआ , निकला हुआ , जो प्रकट हुआ हो । प्रथम = पहले , पहले - पहल ।  परा धारा = श्रेष्ठ धारा , चेतन धारा । ब्रह्मनाद = नादब्रह्म , शब्दब्रह्म , ब्रह्म का शब्दरूप , शब्दरूपी ब्रह्म , परमात्मा से संबंधित नाद , सृष्टि निर्माण हेतु परमात्मा से जो ध्वन्यात्मक शब्द उत्पन्न हुआ वह । शब्दब्रह्म = शब्दरूपी ब्रह्म , आदिनाद जिसे कुछ लोग ब्रह्म का ही स्वरूप मानते हैं । प्रतीक = चिह , वह जिससे किसी की पहचान हो जाए । ( आदिनाद परमात्मा की पहचान करा देता है , इसीलिए वह परमात्मा का प्रतीक कहा जाता है । ) प्रभु का ध्वन्यात्मक नाम = परम प्रभु परमात्मा का वह नाम जो वणों से नहीं , ध्वनि से बना हुआ है । सारशब्द =  आदिनाद जो सृष्टि का सारतत्त्व है अर्थात् जिसके आधार पर सारी सृष्टि टिकी हुई है , सृष्टि से जिसके निकल जाने पर सृष्टि का विनाश हो जाता है । सत्शब्द = वह आदिनाद जो अविनाशी ( अपरिवर्तनशील ) है । सत् = अविनाशी , अपरिवर्तनशील । चेतन = ज्ञानमय , ज्ञानस्वरूप । अव्यक्त = जो इन्द्रियों के ग्रहण में नहीं आए ; यहाँ अर्थ है - वह आदिनाद जो कर्ण इन्द्रिय के द्वारा सुना नहीं जाता । व्यक्त = इन्द्रियों के ग्रहण में आनेवाला पदार्थ । व्यापक = जो किसी में फैला हुआ हो । ध्वनि राम = राम ध्वनि , रामनाम , सर्वव्यापक ध्वनि , आदिनाद जो समस्त प्रकृति - मंडलों में फैला हुआ है । ( राम व्यापक ) 
Sadguru Maharshi mehi
 महर्षि मेँहीँ सद्गुरु
सर्वकर्षक = संबको आकर्षित करनेवाला , सबकी सुरत को अपने उद्गम - केन्द्र की ओर खींचनेवाला । हरि , हर = हरनेवाला , खींचनेवाला । कृष्ण = आकर्षित करनेवाला । परम प्रचंडिनि शक्ति = परम प्रचंड शक्ति , परमात्मा की अत्यन्त बड़ी शक्ति, जिसके द्वारा परमात्मा सृष्टि करता है । शिव = कल्याण , कल्याणकारी । शंकर ( शम् + कर ) = कल्याण करनेवाला । रामनाम = राम अर्थात् परम प्रभु परमात्मा का असली नाम । अकथ = जो कहने में नहीं आए , मुँह से जिसका उच्चारण नहीं किया जा सके । अगम = अगम्य , नहीं जानेयोग्य , जहाँ कोई पहुँच न सके , बुद्धि से परे बहुत , अत्यन्त ; यहाँ अर्थ है - अपार । ( आदिनाद को १३७ वें पद्य में भी अगम - अपार कहा गया है ; देखें- “ घट घट में होता आप ही , यह शब्द अगम अपार है । " ) पूर्णकाम = जिसकी सभी इच्छाएं पूरी हो गई हों ; यहाँ अर्थ है - जो सभी इच्छाओं को पूरा कर दे , पूरण काम ।पूर्णकाम = जिसकी सभी इच्छाएं पूरी हो गई हों ; यहाँ अर्थ है - जो सभी इच्छाओं को पूरा कर दे , पूरण काम । स्वर = जो वर्ण ( अक्षर ) स्वतंत्र रूप से उच्चरित हो ; जैसे - अ इ उ ऋ ए ओ आदि । व्यंजन = जो वर्ण स्वर की सहायता से उच्चरित हो ; जैसे - क् च् त् प य र ल ह आदि । अघोष ( अ + घोष ) = अ - नाद , नाद - रहित , जो वस्तुओं के कंपित होने से उत्पन्न ध्वन्यात्मक शब्द नहीं है , जो जड़ात्मक मंडलों के ध्वन्यात्मक शब्दों से भिन्न ध्वनि है , जिसका उच्चरण मुँह से नहीं किया जा सके । ( आदिनाद अलौकिक और चेतन अनाहत नाद है । ) अदोष = दोष - रहित , निर्मल , विकार रहित , त्रयगुण - रहित , निर्गुण । सत्नाम = सच्चा नाम..अपरिवर्तनशील ध्वन्यात्मक शब्द । सेवित = सेवन किया हुआ , ध्यान किया हुआ । ऋषि = वैदिक मन्त्रों के द्रष्टा जो आत्मज्ञ महापुरुष थे । मुनि = मननशील , गंभीर विचारक , जो ब्रह्म , जीव , जगत् , माया आदि दार्शनिक बातों पर विचार करे ; यहाँ अर्थ है - महामुनि , पूरे मुनि , सन्त । गुरु का नाम = आदिगुरु परमात्मा का नाम , गुरुशब्द , सारशब्द ; देखें- " सतगुरु शब्द जो करे खोज , कहैं दरिया तब पूरन जोग । " ( दरिया साहब बिहारी )





भावार्थ

टीकाकार- पूज्यपाद छोटेलाल दास जी महाराज, संतनगर, बरारी, भागलपुर-3, बिहार भारत।
पू. लालदास जी महाराज
     इन्द्रियों को पकड़ में नहीं आनेयोग्य , आदि - रहित , अन्त - रहित , किसी के भी द्वारा शासित नहीं होनेयोग्य , अजन्मा , सृष्टि का आदितत्त्व एवं सबको उत्पत्ति का जो मूलकारण है , उस परमात्मा से आदिसृष्टि के निर्माण के लिए पहले - पहल चंतन ध्वनि की जो धारा निकली , वही स्फोट कहलाती है।।१ ।।

     आदिसृष्टि के पूर्व परमात्मा से निकली हुई चेतन ध्वनि को वही धारा स्फोट कहलाती है ; दूसरी और कोई ध्वनि नहीं । वही उद्गीथ , ब्रह्मनाद , शब्दब्रह्म और ओम् भी कही जाती है । अत्यन्त मीठी प्रणव ध्वनि की धारा वही है और परमात्मा का सच्चा चिह्न भी वही है ॥२ ॥ 

     परम प्रभु परमात्मा का ध्वन्यात्मक नाम वही है ; सारशब्द और सत्शब्द आदि नामों से भी वही जानी जाती है । वह अपरिवर्तनशील , ज्ञानमयी और कर्ण इन्द्रिय से नहीं सुनी जा सकनेवाली है । इन्द्रियों के ग्रहण में आनेवाले सभी पदार्थों में व्यापक ध्वनि वही है ॥३ ॥ 

     समस्त प्रकृति - मंडलों में व्याप्त होकर रहनेवाली वही ध्वनि रामनाम भी कहलाती है । साधना के द्वारा अपने शरीर के अन्दर पकड़े जाने पर सबकी सुरत को अपने उत्पत्ति - केन्द्र ( परमात्मा ) की ओर खींचनेवाली होने से वही हरिनाम और कृष्णनाम भी कहलाती है । वही परमात्मा की अत्यन्त बड़ी शक्ति है ; कल्याणकारी होने के कारण वही शिवनाम और शंकरनाम भी कही जाती है । त्रयतापों को हर लेनेवाली होने के कारण वही हरनाम भी कहलाती है ।।४ ।। 

सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी
सद्गुरु महर्षि मेँहीँ

     त्रय गुणों ( सत्त्व , रज और तम ) से विहीन और रामनाम ( परम प्रभु परमात्मा का सच्चा नाम ) वही है । मुँह से उच्चारित नहीं की जा सकनवाली , अपार और सभी इच्छाओं को पूर्ण कर देनेवाली ध्वनि वही है । वह स्वर - व्यंजन वर्णो से नहीं बना हुआ अर्थात् ध्वन्यात्मक , नाद - रहित ( जड़ात्मक मंडलों के ध्वन्यात्मक शब्दों से भिन्न ) अथवा मुँह से नहीं उच्चारित होनेयोग्य और निर्मल चेतन ध्वनि का समुद्र है अर्थात् अपार निर्मल चेतन ध्वनि है ।।५ ।।

     गुरु नानकदेवजी द्वारा कहा हुआ'१ ॐ सत्नाम ' भी वही है । ऋषियों के द्वारा ध्यान किया हुआ परम प्रभु परमात्मा का नाम वही है । इसी तरह पूरे मुनियों ( सन्तों ) द्वारा ध्यान किया हुआ गुरुनाम ( आदिगुरु परमात्मा का नाम ) भी वही है । सद्गुरु महर्षि में ही परमहंसजी महाराज कहते हैं कि परम प्रभु परमात्मा के इसी ओम् कहलानेवाले अत्यन्त सूक्ष्म ध्वन्यात्मक नाम का भजन ( ध्यान ) करो ।।६ ।। 


टिप्पणी -

. जो आदि - अन्त - रहित है , उसके पूर्व उससे भिन्न दूसरा कुछ नहीं हो सकता । 

पूज्य पाद लालदास जी महाराज
टिप्पणीकार- लालदा
. परमात्मा अपने से बाहर अवकाश नहीं रखनेवाला , अनन्त , अखंडित और सर्वत्र अत्यन्त सघन होकर विद्यमान है । इसलिए उसमें लचकन - सिकुड़न , गति या कंप नहीं हो सकता । संसार में कोई चीज बने और कंपन नहीं हो , यह संभव नहीं । एक मिट्टी की गोली बनाते समय भी हमारे हाथों की उँगलियों में और मिट्टी के लोंदे में कंपन होता है । इसलिए यह बिलकुल सत्य है कि बिना कंपन के कोई क्रिया या कोई रचना नहीं हो सकती । परमात्मा ने आदिसृष्टि के पूर्व अपनी सर्वशक्तिमत्ता से एक शब्द पैदा किया । उसी शब्द का कंपन सृष्टि का कारण हुआ । 

. वैयाकरणों ने आदिशब्द की व्याख्या ' स्फोट ' नाम से की है । वे इसको शब्दब्रह्म भी कहते हुए इसकी एकता श्रीमदाद्य शंकराचार्य के अद्वैत ब्रह्म से बतलाते हैं । जो किसी अर्थ ( प्रयोजन , अभीष्ट , प्राप्तव्य ) को प्रकट कर दे वा प्राप्त करा दे , उसे स्फोट कहते हैं । आदिनाद परमात्मा का साक्षात्कार करा देता है , इसीलिए वह स्फोट कहलाता है । 

. अत्यन्त मधुर आदिनाद बहुत तीव्र स्वर में सृष्टि के अन्तस्तल में निरन्तर ध्वनित हो रहा है , मानो वह परमात्मा द्वारा तीव्र स्वर में गाया गया कोई मधुरतम गीत हो । आदिनाद को उद्गीथ या उद्गीत कहने का यही कारण है । 

. अ , उ और म् को संधि से बना ' ओम् ' शब्द मुंह के उच्चारण के सभी स्थानों को भरते हुए उच्चरित होता है । ऐसा कोई दूसरा शब्द नहीं है । ध्वन्यात्मक आदिनाद भी संपूर्ण सृष्टि में व्याप्त होकर ध्वनित हो रहा है । इसीलिए ' ओम् ' शब्द ध्वन्यात्मक आदिनाद का सबसे अच्छा वाचक माना गया । 

संतमत के प्रचारक सद्गुरु बाबा देवी साहब

. साधक जिसको नमन करे अर्थात् जिसको पाने की इच्छा करे , उसे प्रणव कहते हैं । साधक अनहद ध्वनियों के बीच आदिनाद को पकड़ने की इच्छा करता है । ' प्रणव ' ( प्र + नव ) का इस तरह भी अर्थ करना अनुचित नहीं है कि जो प्रकृति से उत्पन्न संसार - महासागर को पार कराने के लिए नाव के समान है अथवा जो साधक को प्रकृष्ट रूप से नवीन ( शुद्धस्वरूप अथवा शिवस्वरूप ) कर दे । 

. प्रतीक का अर्थ है चिह । किसी वस्तु का चिह्न वह है जो उसकी पहचान करा दे । आदिनाद पकड़े जाने पर परमात्मा की प्रत्यक्षता करा देता है । इसीलिए वह परमात्मा का सच्चा चिह्न है । 

8 . जो शब्द स्वर - व्यंजन वाँ से बना होता है , उसे वात्मक शब्द कहते हैं । जैसे - आम , राम , गाय आदि । इसके विपरीत जो शब्द वर्णो से नहीं , ध्वनि से बना होता है , उसे ध्वन्यात्मक शब्द कहते हैं ; जैसे - पशु - पक्षी और वाद्ययंत्र की आवाज , वस्तुओं के गिरने से उत्पन्न आवाज आदि । परमात्मा का असली नाम ध्वन्यात्मक ही है । 

९ . आदिनाद कर्ण इन्द्रिय से नहीं , सुरत से सुना जाता है । । 

१०. जड़ - चेतन - दोनों प्रकृतियों के बनने के पूर्व ही आदिनाद उदित हुआ है , इसीलिए वह दोनों प्रकृति - मंडलों में व्यापक है ; और दोनों प्रकृति - मंडलों के फैलाव से अधिक फैलाव रखने के कारण ही वह अगम - अपार भी कहलाता है । 

११. आदिनाद परमात्मा की अत्यन्त बड़ी शक्ति है ; इसीसे वह सृष्टि करता है । 

बाबा लालदास जी महाराज
बाबा लालदास

१२. घोष का अर्थ होता है - ध्वन्यात्मक शब्द ; जैसा कि रथघोष , शंखघोष आदि शब्दों से पता चलता है । आदिनाद को अघोष ( घोष - रहित , नाद - रहित ) इसलिए कहते हैं कि वह जड़ात्मक मंडल का ध्वन्यात्मक शब्द नहीं है , परमालौकिक चेतन ध्वनि है । व्याकरण में घोष वर्ण उसे कहते हैं , जिसके उच्चारण में गले की स्वरतंत्री में कंपन होता है ; जैसे - ग , घ , ङ , ज , झ , ब आदि । इसके विपरीत जिस वर्ण के उच्चारण में गले की स्वरतंत्री में कंपन नहीं होता है , उसे अघोष वर्ण कहते हैं ; जैसे क , ख , च , छ , ट , ठ आदि । आदिनाद भी किसी पदार्थ के कंपन का परिणाम नहीं है । ब्रह्माण्ड पुराणोत्तर गीता ' में भी आदिनाद को अघोष ( नाद - रहित ) , स्वर - व्यंजन - रहित और मुँह के उच्चारण - अवयवों से नहीं उच्चारित होनेयोग्य बताया गया है ; देखें- " अघोषमव्यंजनमस्वरं च अतालुकण्ठोष्ठमनासिकं च । अरेफजातं परमुष्मवर्जितं तदक्षरं न क्षरते कदाचित् ।। " 

१३. त्रयगुणात्मिका मूल प्रकृति के बनने के पूर्व ही आदिनाद उत्पन्न हुआ है , इसलिए वह सगुण नहीं - निर्गुण है और निर्गुण होने से वह दोप - रहित ( निर्मल , विकारहीन ) कहलाता है । 

१४. आदिनाद में जिनकी सुरत लग जाती है , वे ही ऋषि या सन्त कहलाने के अधिकारी हैं । 

१५. दूर की वस्तु के लिए ' वह ' सर्वनाम प्रयुक्त होता है ; परन्तु जब उसकी बहुत चर्चा हो चुकी होती है , तब उसके लिए ' यह ' का भी प्रयोग किया जा सकता है 

१६. उपनिषद् में आदिनाद को ओम् , उद्गीथ , प्रणव आदि कहा गया है । संतवाणी में इसे सतशब्द , सत्नाम , सारशब्द , आदिनाम आदि कहकर अभिहित किया गया है । ध्वन्यात्मक आदिनाद अद्वितीय ध्वनि है । 

१७. पाँचवें पद्य को दुर्मिल सवैया में बाँधने का प्रयास किया गया है । दुर्मिल सवैया में आठ सगण ( ॥ऽ ) होते हैं ।। ∆


( पदावली के सभी छंदों के बारे में विशेष जानकारी के लिए पढ़ें-- LS14 महर्षि मँहीँ-पदावली की छन्द-योजना ) 




आगे हैं--
|| 6 ||

|| संतमत सिद्धांत ||

१- जो परम तत्त्व आदि - अन्त - रहित , असीम , अजन्मा , अगोचर , सर्वव्यापक और सर्वव्यापकता के भी परे है , उसे ही सर्वेश्वर ' सर्वाधार मानना चाहिये तथा अपरा ( जड़ ) और परा ( चेतन ) ; दोनों प्रकृतियों के पार में अगुण और सगुण पर , अनादि - अनन्त स्वरूपी अपरम्पार शक्तियुक्त , देशकालातीत ,...... 

पदावली भजन नं.6 स्तुति-प्रार्थना का छठा गद्य "१- जो परम तत्त्व आदि - अन्त - रहित , असीम,.." को शब्दार्थ सहित पढ़ने के लिए     👉 यहां दबाएं  । 


महर्षि मेँहीँ पदावली  शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी-सहित पुस्तक में उपरोक्त भजन नंबर 5 का लेख निम्न प्रकार से प्रकाशित है--


पदावली भजन 4+5

पदावली भजन 5क
पदावली भजन 5ख
पदावली भजन 5ख

पदावली भजन 5+6


     प्रभु  प्रेमियों !  "महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी सहित" नामक पुस्तक  से इस भजन के शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी द्वारा आपने  जाना कि संतमत में शब्द की महिमा क्या है? संतमत सत्संग की प्रातः कालीन स्तुति प्रार्थना में आने वाले ओंकार की स्तुति और ध्यान,ओंकार की कथा, एक ओंकार, ऊं ओंकार मंत्र, ओंकार ध्वनि, omkar, ओम का ध्यान,ॐ की उत्पत्ति, ॐ का विज्ञान,ओम की शक्ति,ॐ का सही उच्चारण,ॐ मंत्र,ओम मंत्र का चमत्कार,ॐ की सिद्धि,मीनिंग ऑफ ॐ इन हिंदी,ॐ बोलने के फायदे,शब्द की महिमा से ओतप्रोत सारा संसार है । इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस पद्य का पाठ किया गया है उसे सुननेे के लिए निम्नांकित वीडियो देखें ।




महर्षि मेंहीं पदावली, शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी सहित।
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P05 || अव्यक्त अनादि अनन्त अजय भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी || इसमें ॐ कार की महिमा है P05 || अव्यक्त अनादि अनन्त अजय भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी  || इसमें ॐ कार  की महिमा है Reviewed by सत्संग ध्यान on 1/09/2018 Rating: 5

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