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कबीर वाणी 07 । Hindi bhajan Part of Bhakti । टोटे में भक्ति करै । दोहा शब्दार्थ, भावार्थ सहित

संत कबीर साहब की वाणी / 07

प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज प्रमाणित करते हुए "संतवाणी सटीक"  भारती (हिंदी) पुस्तक में लिखते हैं कि सभी संतों का मत एक है। इसके प्रमाण स्हवरूप बहुत से संतों की वाणीओं का संग्रह कर उसका शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी लिखी गई हैं। इनके अतिरिक्त  "सत्संग योग" और अन्य जगह भी संतवाणीयों का संग्रह है। जिसका टीकाकरण पूज्य पाद लाल दास जी महाराज ने किया है। यहां इनकी पुस्तक "संतवाणी-सुधा सटीक" पुस्तक से  संत श्री कबीर साहब जी महाराज की वाणी "टोटे में भक्ति करै...'  साखी
का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी पढेंगे। 

भक्तों ने अपनी भक्ति-भावना को कई तरह से व्यक्त किया है। जैसे कि परा भक्ति, नवधा भक्ति, रागानुगा भक्ति आदि अनेक प्रकार से । परंतु यहां संत कबीर साहब ने जो अपनी वाणी में भक्ति के बारे में जो बताया है वह सर्वसाधारण से लेकर महापुरुषों तक  सभी के लिए कल्याणकारी है। इसमें- भक्त की परिभाषा, नवधा भगति कहउँ तोहि पाहीं, म्हणजे काय, नवविधा, शबरी ज्ञान, संत कबीर साहब के दोहे अर्थ सहित, भक्ति का अंग, संतवाणी अर्थ सहित, संतमत भजन, कबीर वाणी का अर्थ, bhakti geet, कबीर भजन, कबीर भजन निर्गुण, निर्गुण भजन हिंदी, kabir ke dohe, kabir vani, kabir saheb ke bhajan, kabir amritwani, कबीर साहब के अमृतवाणी, songs of kabir, bhakti bhajan hindi, का सार ज्ञान आ गया है।

सदगुरु कबीर साहब के इस भजन के पहले वाले भजन को अर्थ सहित पढ़ने के लिए    यहां दबाएं।


सदगुरु कबीर साहब और टीकाकार स्वामी लालदास जी महाराज।
संत कबीर साहब और टीकाकार लाल दास जी

Hindi bhajan Part of Bhakti

संत कबीर साहब जी महाराज कहते हैं कि जो सांसारिक दृष्टि से घाटे में रहकर भी भक्ति करता है, वही सच्चा भक्त है, सपूत है ,वीर है ।  संत कबीर साहब के इन हिंदी दोहे (bhakti bhajan in hindiमें जो बतलाया गया है। इसे अच्छी तरह समझने के लिए निम्नलिखित में शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणियों को पढ़ें-

॥ भक्ति को अंग ॥

 टोटे में भक्ती करै , ताका नाम सपूत ।
           मायाधारी मस्खरे , केते ही गये ऊत ।।

 शब्दार्थ - टोटे में घाटे में , हानि में । सपूत - सच्चा पुत्र , वीर । मायाधारी माया को पकड़े हुए , माया में आसक्त , धनवान् । मस्खरे - मसखरा , बहुत हँसी - मजाक करनेवाला , बहुत आनन्द मनानेवाला । केते ही - कितने ही । ऊत - अऊत , अपूत , बिना पुत्र का , निष्फल , व्यर्थ , बेकार , बिना किसी लाभ के ही ।

 भावार्थ - जो सांसारिक दृष्टि से घाटे में रहकर भी भक्ति करता है , उसी का नाम सपूत है अर्थात् वही वीर है । माया ( धन - दौलत ) को पकड़े हुए और उसी में आनंद माननेवाले कितने ही लोग व्यर्थ जीवन बिताकर चले गये ।

 प्रेम बिना जो भक्ति है , सो निज डिंभ विचार ।
                 उद्र भरन के कारने , जनम गँवायो सार ।

 शब्दार्थ - भक्ति - सेवा । डिंभ - दंभ, कपट । उद्र - उदर, पेट ।

 पद्यार्थ - किसी के हृदय में प्रेम - रहित जो भक्ति - भाव है , वह उसका कपटपूर्ण भाव है । मानो उसने केवल पेट भरने के लिए ही अपने सार जन्म ( महत्त्वपूर्ण मानव - जीवन ) को गँवा दिया ।

 भक्ति दुवारा साँकरा , राई दसवें भाव ।
                 मन ऐरावत है रहा , कैसे होय समाव ॥

 शब्दार्थ - भक्ति दुवारा - भक्ति का द्वार , दशम द्वार जिसमें घुसने पर ही वास्तविक भक्ति शुरू होती है । राई - सरसों । भाव - भाग , हिस्सा , टुकड़ा । ऐरावत - विशाल डील - डौल और चार दाँतोंवाला इन्द्र का सफेद हाथी , जो समुद्र - मंथन से निकला था । समाव - समावेश , प्रवेश ।

 भावार्थ - भक्ति का द्वार ( दशम द्वार ) सरसों के दाने के दसवें भाग से भी अधिक सूक्ष्म है । जिसका मन ऐरावत हाथी की तरह मोटा हो रहा है अर्थात् जिसका मन संसार में अत्यधिक बिखरा हुआ है , उसका उस भक्ति - द्वार में प्रवेश कैसे होगा ? अर्थात् नहीं होगा ।

जब लगि भक्ति सकाम है , तब लगि निष्कल सेव ।
              कहै कबीर वह क्यों मिले, नि : कामी निज देव ॥ 

शब्दार्थ -सकाम - कामनायुक्त , सांसारिक इच्छा से युक्त । निष्फल ( निः + फल ) - फल - रहित , व्यर्थ । नि : कामी कामना - रहित , इच्छा - रहित ।

 भावार्थ - जबतक भक्ति सांसारिक इच्छाओं से प्रेरित होकर की जाती है , तबतक वह फल - रहित ( बेकार ) होती है । संत कबीर साहब कहते हैं कि इच्छा - रहित होकर भक्ति किये बिना वह इच्छा - रहित निज देव ( परमात्मा ) क्योंकर ( कैसे ) मिल सकता है अर्थात् नहीं मिल सकता है ।

 भक्ति बीज पलटै नहीं , जो जुग जाय अनन्त ।
                ऊँच नीच घर जन्म ले , तऊ सन्त को सन्त ॥ 

शब्दार्थ - पलट - पलटता है , बदलता है , नष्ट होता है । अनंत - असंख्य , अनेक । तऊ - तोभी , फिर भी ।

 भावार्थ - प्राणी के हृदय में पड़ा हुआ भक्ति का बीज ( संस्कार ) कभी भी नष्ट नहीं होता , चाहे अनेक युग बीत जाएँ । भक्त चाहे ऊँचे कुल में जन्म लें अथवा नीचे कुल में , संत - ही - संत होते हैं ।

 ॥ प्रेम को अंग ॥

 जोगी जंगम सेवड़ा , संन्यासी दुरवेस ।
                बिना प्रेम पहुँचे नहीं , दुर्लभ सतगुरु देस ॥

 शब्दार्थ - जोगी - योगी , चित्तवृत्ति का निरोध करनेवाला । जंगम - वह साधु जो सदा घूमता रहता हो - एक जगह स्थिर न रहता हो । सेवड़ा - एक प्रकार का जैन साधु । संन्यासी -  त्यागी , संन्यास आश्रम में रहनेवाला । दुरवेस - दुरवेश , फकीर । दुर्लभ - जो कठिनाई से पाया जा सके । सतगुरु देस - आदिगुरु परमात्मा का देश ।

 भावार्थ - योगी , जंगम , सेवड़ा , संन्यासी या दुरवेश - कोई भी बिना प्रेम के दुर्लभ सद्गुरु - देश ( परमात्म - पद ) नहीं पहुँच सकता ।

 प्रेम भक्ति का गेह है , ऊँचा बहुत एकंत ।
                सीस काटि पग तर धरे , तब पहुँचे घर सन्त ॥

 शब्दार्थ - गेह - गृह , घर , आधार , आश्रय । एकन्त - एकान्त , अलंग , अकेला , भिन्न ।

 भावार्थ - भक्ति का घर प्रेम है , वह सबसे ऊँचा ( श्रेष्ठ ) और सबसे अलग है । अपने सिर को काटकर जो उसे अपने पैरों - तले रखते हैं अर्थात् जो अपने अहंकार को पूरी तरह नष्ट करके अत्यन्त नम्र होते हैं , वे ही संत के घर ( परमात्म - पद ) पहुंचते हैं ।

 टिप्पणी - प्रेम में भक्ति का वास होता है । संसार में प्रेम सबसे बड़ी चीज है । प्रेम के बिना कुछ भी सिद्ध नहीं होता । प्रेम एकनिष्ठ होता है । अहंकार प्रेम - मार्ग का बाधक है ।। इति।।


संत कबीर साहब के इस भजन के बाद वाले भजन को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए  यहां दवाएं


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संतवाणी सुधा सटीक, पुस्तक परिचय, संत कबीर वाणी भावार्थ सहित।
संतवाणी-सुधा सटीक
कबीर वाणी भावार्थ सहित

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कबीर वाणी 07 । Hindi bhajan Part of Bhakti । टोटे में भक्ति करै । दोहा शब्दार्थ, भावार्थ सहित  कबीर वाणी 07 ।  Hindi bhajan Part of Bhakti । टोटे में भक्ति करै ।  दोहा शब्दार्थ, भावार्थ सहित Reviewed by सत्संग ध्यान on 6/29/2020 Rating: 5

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