Ad1

Ad2

कबीर वाणी 09 । Satsang Mahima Bhajan । मैं तो आन पड़ी चोरन के नगर । शब्दार्थ, भावार्थ सहित

संत कबीर साहब के वाणी / 09

प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज "संतवाणी सटीक"  भारती (हिंदी) पुस्तक में बहुत से संतों की वाणीओं का संग्रह कर उसका शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी द्वारा प्रमाणित करते हुए  लिखते हैं कि सभी संतों का मत (विचार) एक ही है। "संतवाणी-सटीक" के अतिरिक्त  "सत्संग योग" और अन्य जगह भी संतवाणीयों का संग्रह है। जिसका टीकाकरण पूज्यपाद लालदास जी महाराज ने किया है। यहां इनकी पुस्तक "संत-भजनाली सटीक" पुस्तक से  संत श्री कबीर साहब जी महाराज की वाणी "मैं तो आन पड़ी चोरन के नगर...'  भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी पढेंगे। 

इस भजन में सत्संग की महिमा का वर्णन करते हुए कबीर साहब कहते हैं-  जहां सत्संग होता है, वहां के लोग ज्ञानी हो जाते हैं। उन्हें आध्यात्मिक गुरु मिल जाते हैं। मूर्ख मनुष्य सत्संग का महत्त्व कुछ भी नहीं जानता। सत्संग में अमृत की वर्षा होती है। इत्यादि बातों के साथ-साथ निम्नलिखित बातों पर भी कुछ-न-कुछ चर्चा मिलेगा जैसे कि संतवाणी अर्थ सहित,संतमत भजन, कबीर वाणी अर्थ, bhakti geet, कबीर भजन, कबीर भजन निर्गुण, निर्गुण भजन हिंदी, सत्संग भजन,सत्संग महिमा,सत्संग महिमा का भजन, सत्संग की बातें, सतगुरु महिमा, सत्संग गुरु महिमा, गुरु महिमा भजन, सत्संग का लाभ, सत्संग प्रवचन कथा, सत्संग संतवाणी, सत्संग को परिभाषित करो, सत्संग महिमा श्लोक,गुरु महिमा सत्संग भजन Lyricsसतगुरु महिमा,गुरु जी का सत्संग सुनाओ,निर्गुणी भजन, राजस्थानी भजन,भक्ति महिमा भजन, आदि बातें।

सदगुरु कबीर साहब के इस भजन के पहले वाले भजन को अर्थ सहित पढ़ने के लिए    यहां दबाएं।


Kabir Vani 09, Satsang Mahima Bhajan- "मैं तो आन पड़ी चोरन के नगर,.." शब्दार्थ, भावार्थ सहित। संत कबीर साहब और टीकाकार
संत कबीर साहब और टीका कार

Satsang Mahima Bhajan- "मैं तो आन पड़ी चोरन के नगर,.." शब्दार्थ, भावार्थ सहित

संत कबीर साहब जी महाराज कहते हैं कि "मैं तो ऐसे स्थान पर आ गया हूँ , जहाँ के लोग सत्संग करने से जी चुराते हैं । सत्संग नहीं मिलने से मेरा मन छटपटा रहा है।..." इसे अच्छी तरह समझने के लिए "मैं तो आन पड़ी चोरन के नगर... भजन का शब्दार्थ भावार्थ और  टिप्पणी पढ़ें--

कबीर बानी भावार्थ सहित

मैं तो आन पड़ी चोरन के नगर , सतसंग बिना जिय तरसे ॥१ ॥ इस सतसंग में लाभ बहुत है , तुरत मिलावै गुरु से ॥२ ॥
मूरख जन कोइ सार न जानै , सतसंग में अमृत बरसे ॥३ ॥
सब्द - सा हीरा पटक हाथ से ,    मुट्ठी  भरी कंकर से ॥४ ॥
कहै कबीर सुनो भाइ साधो ,   सुरत  करो वहि घर से ॥५ ॥

शब्दार्थ- चोरन के नगर = चोरों के नगर , सत्संग करने से जी चुरानेवाले लोगों के स्थान पर । सतसंग = सत्संग , साधु - संतों की संगति । जिय जी , हृदय , मन । तरसे = तरसता है , व्याकुल होता है , छटपटाता है , बेचैन रहता है । सार = महत्त्व । कोइ = कोई , कुछ भी । अमृत = ज्ञानरूपी अमृत , वह अध्यात्म - ज्ञान जिसे जीवन में उतारने पर अमरत्व की प्राप्ति हो जाती है । सब्द - सा हीरा = हीरे - जैसा बहुमूल्य या महत्त्वपूर्ण शब्द , आदिशब्द , आदिनाद , अनाहत नाद जो परमात्मा का वास्तविक ध्वन्यात्मक नाम है और जिसका ध्यानाभ्यास करने से परमात्मा से एकत्व प्राप्त हो जाता है । पटक हाथ से = हाथ से पटककर , हाथ से फेंककर , अनादरपूर्वक फेंककर , तुच्छ समझकर और फेंककर । मुट्ठी भरी = मुट्ठी में भर लिया , अपना लिया , ग्रहण कर लिया , ले लिया । कंकर = कंकड़ - पत्थर , कंकड़ - पत्थर - सा तुच्छ विषय - सुख । सुरत = चेतन - आत्मा , चेतनवृत्ति । वहि घर से = उसी घर की ओर , अपने उसी मूल - निवास ( परमात्म - पद ) की ओर , जहाँ से पिंड में आये।

 
भावार्थ- मैं तो ऐसे स्थान पर आ गया हूँ , जहाँ के लोग सत्संग करने से जी चुराते हैं । सत्संग नहीं मिलने से मेरा मन छटपटा रहा है।॥१ ॥ इस सत्संग में बहुत - से लाभ होते हैं । सत्संग करते रहने से बहुत शीघ्र अच्छे आध्यात्मिक गुरु मिल जाते हैं ॥२ ॥ कोई भी मूर्ख मनुष्य सत्संग का महत्त्व कुछ भी नहीं जानता । सत्संग में अमृत की वर्षा होती है अर्थात् सत्संग में उस अध्यात्म - ज्ञान का कथन होता है , जिसे जीवन में उतार लेने पर अमरत्व की प्राप्ति हो जाती है।॥३ ॥ मूर्ख लोग हीरे - जैसे बहुमूल्य आदिशब्द के ध्यानाभ्यास की अवहेलना ( उपेक्षा , अनादर ) करके कंकड़ - पत्थर - जैसे तुच्छ विषय - सुख को अपना लेते हैं।॥४ ॥ संत कबीर साहब कहते हैं कि हे साधु भाइयो ! सुनो , अपनी सुरत को अपने उस मूल - निवास ( परमात्म - पद ) की ओर ले चलो , जहाँ से वह पिंड में आयी हुई है।।५ ।।

संत कबीर साहब के इस भजन के बाद वाले भजन "अपनपौ आपुहि तें बिसरो,..." को भावार्थ सहित पढ़ने के लिए  यहां दवाएं


प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "संतवाणी-सुधा सटीक" के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि जहां सत्संग होता है, वहां के लोग ज्ञानी हो जाते हैं। उन्हें आध्यात्मिक गुरु मिल जाते हैं। मूर्ख मनुष्य सत्संग का महत्त्व कुछ भी नहीं जानता। सत्संग में अमृत की वर्षा होती है। इत्यादि बातें इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। । इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त लेख का पाठ करके सुनाया गया है।  हमारा दूसरा पोस्ट पढ़ना ना भूले।




संत भजनावली सटीक, संतो के भजनों का सटीक पुस्तक
संत-भजनावली सटीक
कबीर वाणी भावार्थ सहित

अगर आप 'संत-भजनावली सटीक' पुस्तक से सद्गुरु कबीर साहब जी महाराज की  अन्य पद्यों के अर्थों के बारे में जानना चाहते हैं या इस पुस्तक के बारे में विशेष रूप से जानना चाहते हैं तो  यहां दबाएं। 

सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की पुस्तकें मुफ्त में पाने के लिए  शर्तों के बारे में जानने के लिए यहां दवाएं ।      फिर मिलेंगे दूसरे पोस्ट में। जय गुरु महाराज।

कबीर वाणी 09 । Satsang Mahima Bhajan । मैं तो आन पड़ी चोरन के नगर । शब्दार्थ, भावार्थ सहित  कबीर वाणी 09 । Satsang Mahima Bhajan । मैं तो आन पड़ी चोरन के नगर । शब्दार्थ, भावार्थ सहित Reviewed by सत्संग ध्यान on 6/29/2020 Rating: 5

कोई टिप्पणी नहीं:

कृपया सत्संग ध्यान से संबंधित किसी विषय पर जानकारी या अन्य सहायता के लिए टिप्पणी करें।

Ads 5

Blogger द्वारा संचालित.