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P69, Third mole, Shiva eye or divine eye "सुरति दरस करन को जाती।..." महर्षि मेंहीं पदावली अर्थ सहित।

महर्षि मेंहीं पदावली / 69

प्रभु प्रेमियों ! संतवाणी अर्थ सहित में आज हम लोग जानेंगे- संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "महर्षि मेंहीं पदावलीहम संतमतानुयाईयों के लिए गुरु-गीता के समान अनमोल कृति है। इस कृति के पद्य संख्या 69वें भजन- "सुरति दरस करन को जाती।...'' पद्य का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है। जिसे पूज्यपाद लालदास जी महाराज नेे किया है।

इस Santmat God भजन (कविता, पद्य, वाणी, छंद) "सुरति दरस करन को जाती।..." में बताया गया है कि- तीसरा तिल, शिव नेत्र या दिव्य चक्षु सब एक तरफ इशारा करते है , वह है दोनों आँखों के मध्य में जिससे रिद्धि-सिद्धि प्राप्त होता है,अभ्यास में सूरत,शब्द,सूरत,निरत,अभ्यास क्या होता,सूरत शब्द अभ्यास कैसे करें, सूरत शब्द अभ्यास की सही विधि,क्या तिल अनाज है,तिल का पौधा,लाल तिल क्यों होते है,तिल की किस्में,चेहरे पर तिल क्यों होते है,तिल अनाज है या नहीं,चेहरे पर तिल होने के कारण,तिल किस कमी से होते है, आदि बातें।


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P69, Third mole, Shiva eye or divine eye "सुरति दरस करन को जाती।..." महर्षि मेंहीं पदावली अर्थ सहित। तीसरा तिल, शिव नेत्र के कार्य पर चर्चा करते गुरुदेव।
तीसरा तिल, शिव नेत्र के कार्य पर चर्चा करते गुरुदेव।



Third mole, Shiva eye or divine eye

सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज जी  कहते हैं- "परमात्म-दर्शन करने के लिए चलने वाली सूरत पहले-पहल तीसरे तिल-रूपी खिड़की (आज्ञाचक्रकेंद्रबिंदु) की ओर सिमटी हुई दृष्टि से देखती है।....." इस विषय में पूरी जानकारी के लिए इस भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है। उसे पढ़ें-

P69, Third mole, Shiva eye or divine eye "सुरति दरस करन को जाती।..." महर्षि मेंहीं पदावली अर्थ सहित। पदावली भजन 69 और शब्दार्थ। तीसरा तिल वर्णन।
पदावली भजन 69 और शब्दार्थ। तीसरा तिल वर्णन।

P69, Third mole, Shiva eye or divine eye "सुरति दरस करन को जाती।..." महर्षि मेंहीं पदावली अर्थ सहित। पदावली भजन 69 का भावार्थ और टिप्पणी। शिव नेत्र वर्णन।
पदावली भजन 69 का भावार्थ और टिप्पणी। शिव नेत्र वर्णन।

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* सुरत शब्द योग एक आंतरिक साधन या अभ्यास है। जो संतमत और अन्य संबंधित आध्यात्मिक परंपराओं में अपनाई जाने वाली योग पद्धति है। संस्कृत में 'सुरत' का अर्थ आत्मा, 'शब्द' का अर्थ ध्वनि और 'योग' का अर्थ जुड़ना है। इसी शब्द को 'ध्वनि की धारा' कहते हैं। 
* उसी के लिए यह एक विधि है। उसे बताई जाती है। अभ्यास किया जाता है। हम उसे अभ्यासी कहते हैं। यह गोपनीय है, इसलिए इसकी व्याख्या सार्वजनिक तौर पर नहीं की जा सकती है।
* मेडिटेशन का उद्देश्य वास्तव मे कोई लाभ प्राप्त करना नहीं होना चाहिए, परंतु फिर भी इसकी सहायता से इंसान अपने उद्देश्य पर अपना ध्यान केन्द्रित करके अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर सकता है।
* ध्यान अभ्यास शुरू करने के पहले किसी सच्चे गुरु से दीक्षा लेना अति आवश्यक है। नहीं तो इसमें कई तरह के नुकसान हो सकते हैं?

प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "महर्षि मेंहीं पदावली" के भजन नं. 68 का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के द्वारा आप ने जाना कि मोक्ष प्राप्त करने का रास्ता दृष्टि योग क्या है? और इसे कैसे करना चाहिए। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस पद का पाठ किया गया है उसे सुननेे के लिए निम्नलिखित वीडियो देखें।




महर्षि मेंहीं पदावली, शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी सहित।
महर्षि मेँहीँ पदावली.. 
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P69, Third mole, Shiva eye or divine eye "सुरति दरस करन को जाती।..." महर्षि मेंहीं पदावली अर्थ सहित। P69, Third mole, Shiva eye or divine eye "सुरति दरस करन को जाती।..." महर्षि मेंहीं पदावली अर्थ सहित। Reviewed by सत्संग ध्यान on 1/06/2020 Rating: 5

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