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P143, Gurudev's mental aarti "प्रेम प्रीति चित चौक लगाये।..." महर्षि मेंहीं पदावली भजन अर्थ सहित

महर्षि मेंहीं पदावली / 143

प्रभु प्रेमियों ! संतवाणी अर्थ सहित में आज हम लोग जानेंगे- संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "महर्षि मेंहीं पदावली" जो हम संतमतानुयाइयों के लिए गुरु-गीता के समान अनमोल कृति है। इस कृति के 143वां पद्य  ""प्रेम प्रीति चित चौक लगाये।.....''  का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के  बारे में। जिसे  पूज्यपाद लालदास जी महाराज  नेे किया है।

इस Santmat आरती भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन,भजन कीर्तन, पद्य, वाणी, छंद) "प्रेम प्रीति चित चौक लगाये।,..." में बताया गया है कि- गुरुदेव की मानसिक आरती का विधान और महत्व?गुरुदेव की मानसिक आरती, महर्षि मेंहीं आरती, संतमत आरती, गुरु महाराज की आरती कैसे करें,श्री गुरु महाराज जी की आरती,सतगुरु महाराज की आरती,गुरु जी की आरती,गुरुदेव की आरती,गुरु महाराज के भजन,गुरुवार की आरती,सतगुरु जी की आरती,गुरु जी की आरती lyrics,कपूर की आरती,शयन आरती,आरती कितनी बार घुमानी चाहिए,पंच देव आरती,आरती करना,आरती क्रम,आरती सामग्री,आरती संग्रह पुस्तक,कपूर की आरती,शयन आरती,वेदों में ईश्वर का स्वरूप, परमात्मा कौन है, आदि बातें। 

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P143, गुरुदेव की मानसिक आरती, प्रेम प्रीति चित चौक लगाये,महर्षि मेंहीं पदावली, भजन अर्थ सहित

Gurudev's mental aarti

सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज जी  कहते हैं- "हृदय में प्रेम - प्रीति का चौका लगाकर उसपर प्रेम का सुंदर आसन रखे और गुरु को प्रेम के मार्ग से ले आकर उसपर बिठाये । फिर प्रेम के पात्र में प्रेम का जल लाकर प्रेम भाव के हाथों उनके चरणों को धोये और चरणामृत ग्रहण करके...." इस विषय में पूरी जानकारी के लिए इस भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है। उसे पढ़ें-

 ( १४३ )
प्रेम प्रीति चित चौक लगाये । आसन प्रेम सुभग धरवाये ॥१ ॥ प्रेम डगर गुरु आनि बिठाये । प्रेम प्रेम जल पात्र मंगाये ।।२ ।। प्रेम भाव कर चरण पखारे । चरणामृत ले सुरत सुधाये ॥३ ॥ पूरन भाग जगे अब आये । प्रेम थाल गुरु सन्मुख लाये ॥४ ॥ जामें प्रेम थाल भर पूरे। रुचि रुचि साहब भोग लगाये ।।५ ।।
प्रेम  पान दे आरति उतारे । गुरु को प्रेम पलंग पौढ़ाये ॥६ ॥ बाबा सतगुरु देवी साहब । ' मेंहीं' जपत प्रेम मन लाये ।।७ ।।

शब्दार्थ-प्रेम - प्रीति- प्रेम , प्रसन्नता , संतोष । चित - चित्त , हृदय , मन । चौक लगाये - चौका लगाया । ( चौका लगाना - सफाई या पवित्रता के लिए किसी स्थान को गीली मिट्टी या गीले गोबर से लीपना - पोतना । ) आसन - वह चीज जो बैठने के काम में लायी जाए । सुभग - सुंदर । धरवाये रखवाय ; यहाँ अर्थ है - रखे । डगर - मार्ग । आनि - लाकर । पात्र - वर्तन । भाव - प्रेम । कर - हाथ । पखारे प्रक्षालन करे , धोये । चरणामृत ( चरण + अमृत ) = वह जल जिससे साधु - संत आदि पवित्र पुरुषों के चरण धोये गये हों , जिसका भक्त लोग पान भी करते हैं । सुधार्य - शुद्ध करे । पूरन भाग - पूर्ण भाग्य , पूरा सौभाग्य । जगे जग गये , प्रकट हो गया , उदित हो आया । लाय - लं आये । भरपूरे - भरपूर , परिपूर्ण , अच्छी तरह भरा हुआ । रुचि रुचि - रुच रुच , बहुत रुचि से , बहुत प्रेम से , अत्यन्त प्रेमपूर्वक ; देखें- " हंस कमल दल सतगुरु राजें , रुचि - रुचि दरसन पाऊँ । " ( संत चरणदासजी ) । साहब ( अ ) स्वामी । भोग लगाय - नैवेद्य अर्पित करे अथवा भोजन कराये । पलंग ( सं ० पर्यक ) -बड़ी और सुन्दर चारपाई । पौढ़ाये - सुलाये , लिटाय ; देखें- " एक बार जननी अन्हवाए । करि सिंगार पलना पौढाए ।। " ( रामचरितमानस , बालकांड ) प्रेम मन लार्य - प्रेमपूर्वक मन में लाकर , प्रेमपूर्वक मन में बसाकर , मन में प्रेम लाकर , प्रेम - परिपूर्ण मन से । ( मन लाना - प्रेम करना , आसक्त होना । )

 भावार्थ - हृदय में प्रेम - प्रीति का चौका लगाकर उसपर प्रेम का सुंदर आसन रखे और गुरु को प्रेम के मार्ग से ले आकर उसपर बिठाये । फिर प्रेम के पात्र में प्रेम का जल लाकर प्रेम भाव के हाथों उनके चरणों को धोये और चरणामृत ग्रहण करके अपनी सुरत को शुद्ध करे ।।१-२-३ ।। इस तरह इसी मनुष्य जन्म में अपना पूरा सौभाग्य जगा ले । प्रेम की भोजन सामग्री से भरपूर प्रेम के थाल को स्वामी सद्गुरु के सामने लाये और अत्यन्त प्रेमपूर्वक उनको भोजन कराये ।।४-५ ।। हाथ - मुँह धुलाने के बाद प्रेम का पान दे और आरती उतारे ; पुनः विश्राम के लिए प्रम के पलंग पर उनको लिटा दे ।।६ ।। सद्गुरु महर्षि में ही परमहंसजी महाराज कहते हैं कि मैं सद्गुरु बाबा देवी साहब को मन में बसाकर प्रेमपूर्वक उनकी भक्ति करता हूँ ।।७ ।।

 टिप्पणी -१ . बाहरी पूजा से मानसी पूजा श्रेष्ठ होती है , जिसमें साधक मनोमयी सामग्री से मन - ही - मन अपने इष्ट की पूजा करता है । दृष्टियोग और शब्दयोग के अभ्यास से अंदर में जो कुछ भी प्रत्यक्ष होता है , संतों ने उसे ही असली पूजा की सामग्री मान लिया है । इस पद्य में मात्र प्रेम भाव को पूजन की सामग्री मान लेने की सम्मति है । इससे यह जानने में आता है कि संत कवि गुरु के प्रेम में मग्न रहने को गुरु की सबसे बड़ी पूजा मानते हैं । २.१४३ वें पद्य के प्रत्येक चरण में ३२ मात्राएँ हैं ; १६-१६ पर यति और अन्त में प्रायः दो गुरु वर्ण । -

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प्रभु प्रेमियों !  "महर्षि मेंहीं पदावली शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी सहित" नामक पुस्तक  से इस भजन के शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी द्वारा आपने जाना कि गुरुदेव की मानसिक आरती का विधान और महत्व। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस पद्य का पाठ किया गया है उसे सुननेे के लिए निम्नांकित वीडियो देखें।




महर्षि मेंहीं पदावली, शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी सहित।
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