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P144, The true secret of godly devotion "गुरु जुगती लय घट पट टारों।..." महर्षि मेंहीं पदावली भजन अर्थ सहित

महर्षि मेंहीं पदावली / 144

प्रभु प्रेमियों ! संतवाणी अर्थ सहित में आज हम लोग जानेंगे- संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "महर्षि मेंहीं पदावली" जो हम संतमतानुयाइयों के लिए गुरु-गीता के समान अनमोल कृति है। इस कृति के 144वां पद्य "गुरु जुगती लय घट पट टारों।.....''  का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी के  बारे में। जिसे  पूज्यपाद लालदास जी महाराज  नेे किया है।

महर्षि मेंहीं पदावली के इस आरती भजन (कविता, गीत, भक्ति भजन,भजन कीर्तन, पद्य, वाणी, छंद) "गुरु जुगती लय घट पट टारों।,..." में बताया गया है कि- ईश्वर भक्ति का असली भेद जो वेदों-पुराणों में, सभी पहुंचे हुए संत-महात्माओं की वाणियों में और गीता-रामायण आदि धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है। वह असली भेद क्या है? उस भेद की प्राप्ति कैसे होगी? ईश्वर का स्वरूप, परमात्मा कौन है? ईश्वर भक्ति का असली भेद,ईश्वर का स्वरूप,ईश्वर का स्वरूप,ईश्वर का शाब्दिक अर्थ,ईश्वर कौन है,वेदों में ईश्वर का स्वरूप,सबसे बड़ा ईश्वर कौन है,वेदों के अनुसार ईश्वर कौन है,ईश्वर एक है,ईश्वर का रहस्य आदि बातें। 

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The true secret of godly devotion

सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज जी  कहते हैं- "गुरु से योग की युक्ति लेकर शरीर के अंदर के अंधकार , प्रकाश और शब्दरूपी आवरणों को हटाये और उन आवरणों के अंत ( पार ) में अवस्थित शब्दातीत पद में प्रवेश करके अपने शरीर - मन आदि सब कुछ को परमात्मा पर निछावर कर दे।..." इस विषय में पूरी जानकारी के लिए इस भजन का शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी किया गया है। उसे पढ़ें-

 ( १४४ )
गुरु जुगती लय घट पट टारौं । अंतर अंत धंसि तन मन वारौं ॥१ ॥ हृदय गगन को थाल बनावौं । ब्रह्मज्योति आरती सजावौं ॥२ ॥ आत्म समर्पि नैवेद्य चढ़ावौं । सारशब्द धुनि मंगल गावौं ॥३ ॥ अनहद घंटा शंख बजावौं । यहि आरति करि प्रभु अपनावौं ॥४ ॥ प्रभु को पाइ अपनपौं हारौं ।  द्वैत भाव ' मेंहीं  तज डारौं ॥५ ॥

शब्दार्थ - लय - लेकर । अंतर अंत - अंतर के सभी आवरणों के अंत में । वारौं - वारे , निछावर करे । हृदय गगन - योगहृदय ( आज्ञाचक्र ) का शून्य , अंदर का आकाश । नैवेद्य - निवेदन करनेयोग्य , चढ़ानेयोग्य , वह खाद्य पदार्थ जो देवता आदि के प्रति अर्पित किया जाए , भोग । मंगल गावौं मंगलगान करें , मंगलगीत गाये । ( मंगलगीत - वह गीत जो शुभ अवसर पर गाया जाए । ) अपनाचौं - अपनाये , अपना बनाये , अपने अनुकुल कर । अपनपने - अपनापा . आत्मस्वरूप ; देखें- " अपुनपौ आपुन ही में पायो । " ( भक्त सूरदासजी ) हारों - हार , त्याग दे , छोड़ दे , गँवा दे , खो दे , निछावर करे । द्वैत भाव - जीव के ब्रह्म से अलग होने का भाव । 

भावार्थ - गुरु से योग की युक्ति लेकर शरीर के अंदर के अंधकार , प्रकाश और शब्दरूपी आवरणों को हटाये और उन आवरणों के अंत ( पार ) में अवस्थित शब्दातीत पद में प्रवेश करके अपने शरीर - मन आदि सब कुछ को परमात्मा पर निछावर कर द । ।१ ।। परमात्मा की आरती करने के लिए योगहृदय ( आज्ञाचक्र के ऊपर के आधे भाग ) के शून्य को या आन्तरिक आकाश को थाल बनाकर उसमें ब्रह्मज्योति का प्रज्वलित दीपक सजाए ; अपने - आपको ( आत्मस्वरूप को ) नैवेद्य के रूप में चढ़ाए ; अनहद नादों के घंटा , शंख आदि मंगल बाजे बजाए और सारशब्द की ध्वनि ( ध्वन्यात्मक सारशब्द ) का मंगलगान करें । इस तरह की आरती करके परम प्रभु परमात्मा को अपना ले ।।३-४ ।। सद्गुरु महर्षि में हीं परमहंसजी महाराज कहते हैं कि इस तरह परम प्रभु परमात्मा को प्राप्त करकं जीवत्व और द्वैत भाव मिटा डाले ।।५ ।।

टिप्पणी -१ . परमात्मा से स्फुटित सारशब्द अत्यन्त मीठी ध्वनि है , मानो यह परमात्मा द्वारा गाया गया गीत हो । इसमें सुरत का संलग्न होना बड़ा कल्याणकारी है । २.१४४ वें पद्य में चौपाई के चरण हैं । । ' महर्षि मेंही - पदावली : शब्दार्थ , भावार्थ और टिप्पणी - सहित ' समाप्त ॥ V ( नित्य की स्तुति - प्रार्थना के अंत में गायी जानेवाली संत तुलसी साहब की निम्नलिखित आरती यहाँ स्वतंत्र रूप में दी गयी है । )


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प्रभु प्रेमियों !  "महर्षि मेंहीं पदावली शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी सहित" नामक पुस्तक  से इस भजन के शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी द्वारा आपने जाना कि ईश्वर भक्ति का असली भेद जो वेदों-पुराणों में, सभी पहुंचे हुए संत-महात्माओं की वाणियों में और गीता-रामायण आदि धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है। वह असली भेद क्या है? उस भेद की प्राप्ति कैसे होगी?  इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस पद्य का पाठ किया गया है उसे सुननेे के लिए निम्नांकित वीडियो देखें।





महर्षि मेंहीं पदावली, शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी सहित।
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P144, The true secret of godly devotion "गुरु जुगती लय घट पट टारों।..." महर्षि मेंहीं पदावली भजन अर्थ सहित P144, The true secret of godly devotion  "गुरु जुगती लय घट पट टारों।..." महर्षि मेंहीं पदावली भजन अर्थ सहित Reviewed by सत्संग ध्यान on 6/09/2020 Rating: 5

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